परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 52 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह हिन्दुस्तान के मशहूर शायर उस्ताद-ए-मोहतरम जनाब एहतराम इस्लाम साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल से लिया गया है| पेश है मिसरा-ए-तरह
"फिजाएं नूर की चादर बिछाती हैं दिवाली में"
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मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
(बह्रे हजज़ मुसम्मन सालिम)
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 अक्टूबर दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 25 अक्टूबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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हैं या है के फेर में आप अकेले नहीं हैं .....मगर ग़ज़ल सुभानाल्लाह वाह्ह्ह्ह की हकदार है |दिली दाद कबूलें
आदरणीय भुवन जी, बढ़िया गज़ल................
ग़ज़ल
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सफाई अरु मिठाई जगमगाती है दिवाली में,
मिलावट की मुसीबत भी सताती है दिवाली में।
गली बाजार है रौशन जगमगाते नजर आते,
फिजाएं नूर की चादर बिछाती हैं दिवाली में।
निगाहें रात भर तकती रही राहें न आया वो,
सभी को याद अपनों की रुलाती है दिवाली में।
बतायें क्या हमें आतंक ने कितना सताया है,
पटाखों की धमक हमको डराती है दिवाली में।
बहुत बदलाव है आया समय के साथ ‘मेठानी’
कमाई छल कपट की मुस्कराती है दिवाली में।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
रदीफ़ के "हैं" और "है" के चक्कर ने आपको भी उलझा दिया
मेठानी जी आपकी ग़ज़ल तो बहुत अच्छी है लेकिन रदीफ़ में आप भी चूक गये।
हैं हैं हैं सब जग करे है है है तुम तात.
इस है है ने दे रखी, हैं हैं को भी मात.. !!!!
बहुत सुन्दर वाह ..बस मतले में अरु का आना थोडा खटक रहा है ..बाकि है और हैं ने इस बार बहुतों को फंसा दिया है बहरहाल हार्दिक बधाई आपको आ० दयाराम मैथानी जी
मेरे जैसे लोगो से गलतियां अक्सर हो जाती हैं। एक वचन आैर बहुवचन के बारे में ध्यान ही नहीं रहा। आप सबने ध्यान िदलाये है तो अब भविष्य में इस आेर ध्यान देना लाजिमी ही होगा।
आ. रजेश कुमारी जी मतले में अरु शब्द हो सकता है कि टक रहा हो किंतु आैर का आैर कोई पयार्वाची मेरी स्मृति में नहीं था। अत: इसका प्रयोग किया। आप सबके प्रित आभसरी हूं कि आपने टिप्पणी कर मेरा ज्ञान बढ़ाया।
- दयाराम मेठानी
आदरणीय दयाराम जी, बढ़िया गज़ल..............बधाई.
सजे बाजार रौनक यूं सुहाती है दिवाली में
सजी गुलनार कोई दिल लुभाती है दिवाली में
इलाहाबाद नैनीताल या फिर शांत पटियाला
फिजाएं नूर की चादर बिछाती हैं दिवाली में
दिखे अनगिन दिये दहलीज पर जलते हुए न्यारे
सगुन की बात दीपक लौ बताती है दिवाली में
बढ़ी ना आय जनता की सुनो लेकिन बढ़ी मांगे
महंगाई कहर यूं यार ढाती है दिवाली में
सितारों आज चमको खूब काली रात कहती है
इसी कारण अमां की रात भाती है दिवाली में
- मौलिक व अप्रकाशित
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