For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।

पिछले 88 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :


"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-89

विषय - "खेत और खलिहान "

आयोजन की अवधि- 9 मार्च 2018, दिन शुक्रवार से 10 मार्च 2018, दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)


बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --



तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल

नज़्म

हाइकू

सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.

रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 9 मार्च 2018, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ


"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें


मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 9263

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

जनाब डॉक्टर छोटे लाल साहिब , ग़ज़ल पर आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

आ0 तस्दीक़ साहिब बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है, हृदय से बधाई कुबूल करें।

मुहतरम जनाब बासुदेव साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

प्रदत्त विषय पर ग़ज़ल कहने का सद्प्रयास हुआ है आ० तसदीक़ अहमद खान साहिब. इसके कई पहलुओं पर विस्तृत चर्चा हो चुकी है, अत: वज़न/तकती'अ आदि के बारे में तो कुछ नहीं कहूँगा. लेकिन यकीनन इस ग़ज़ल का मियार आपके कद से मेल नहीं खा रहा क्योंकि आपसे हमे हमेशा बेहतरीन की उम्मीद रहती है. सादर. 

मुहतरम जनाब योगराज साहिब ,मैं हमेशा बेहतर ही देने की कोशिश करता हूँ । जिस तरह ग़ज़ल को ले कर कॉमेंट किये गए उनका मैं ने जवाब भी दिया है । यह बात अलग है कोई मुत्मइन हो या न हो ।मैं ने अपनी तरफ से प्रदत्त विषय को परिभाषित करने की पूरी कोशिश की है । मुझे उम्मीद है कि आगे भी आप मेरी तरफ ना उम्मीद नहीं होंगे , ग़ज़ल में शिरकत और मश्वरे का बहुत बहुत शुक्रिया। सादर

आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब , आपने अपने मन की बात खेत और खलिहान के माध्यम से ठीक ही कही है। रचना के तकनीकी दृष्टिकोण पर विद्वान अपनी अपनी राय दे ही चुके हैं उन पर भी ध्यान देना आवश्यक लगता है। वैसे, रचनाकार की रचना उसके लिए अद्वितीय होती है। सादर।

मुहतरम जनाब टी आर शुक्ल साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

जनाब तस्दीक साहब,
आपकी ग़ज़ल बहुत खूबसूरत है,
आप जिस विषय को लेकर ग़ज़ल कहे हैं अच्छे अच्छों को शेर कहने में पसीना छूट जाता है,
मुबारकबाद कुबूल करें,

कहने को तो लोग दस ऐब बता देते हैं इसमे क्या, पर उसे सही निभा के भी बताएं,, हाँ यह मंच सीखने सीखने का है पर यह नहीं की किसे पे हमला कर दिया जाए..
समझाने का भी तरीक़ा होता है... शेर शायर की औलाद के तरह होता है, और उसकी औलाद को खराब कहने का क्या मतलब, 
और वो कहें जिनकी ग़ज़लें .......
कुछ लोग इस ब्लाग में बहुत...... बड़े जानकार हैं पर किसी को इतना छोटा मनाना मेरे समझ से परे हैं.....
...... इस तरह किसी के साथ बात करना. अच्छा नहीं होता.... और जनाब तसदि‍क़ साहिब ब्लाग के महत्पूर्ण सदस्य हैं...और हज़ारों ग़ज़ल कह चुके हैं और वो समझाए जो खुद सीख रहे है..
उनके साथ ये बात हमको.. ब्लाग के प्रति निराशा, पीड़ा उत्पन कर रही है
जनाब समर साहब आप की मैं बहुत इज्ज़त करता हूँ आप ब्लाग़ की जान है... आप जब नहीं होतो ब्लाग अधूरा लगता है... मैं आपको उस्ताद के मारातिब के मुताबिक़ देखते हैं... परंतु माफ़ी चाहूंगा आज आपका लहज़ा बदला बदला लगा..
और आपका आखिरी में शेर लिखना,
आग में घी डाल रहा है... आपको नहीं लिखना चाहिए था...
माफ़ी के साथ.
 सलीम रज़ा

जनाब सलीम रज़ा साहिब,आपका बड़ा अहसान है कि आप मेरी इज़्ज़त करते हैं,आपकी जानकारी के लिए बतादूँ कि ये फ़ेसबुक नहीं ओबीओ है, और यहाँ रचना को देखा जाता है,रचनाकार को नहीं,मैंने कोई ऐसी बात नहीं लिखी जिससे मंच की गरिमा को ठेस पहुंचे,:-

'जिसको हो जान-ओ- दिल अज़ीज़ उसकी गली में जाये क्यों'

वैसे अब में अपनी टिप्पणी की इस्लाह आपसे सलाह लेकर किया करूँगा ,

जनाब सलीम रज़ा साहिब ,ऐसा पहली बार नहीं यह तो सदियों से हो रहा है ,

आपने लगता है सारे कॉमेंट पढ़ लिए हैं ,आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

आ. सलीम साहब,
आपकी टिप्पणी का इशारा  मेरी ओर है इसलिए मुझे आना पड़ा वरना मैं अपनी बात पूरी कर चुका था..
//कहने को तो लोग दस ऐब बता देते हैं इसमे क्या, पर उसे सही निभा के भी बताएं// यानी आप कहना चाहते हैं कि वो पाठक जो ग़ज़ल नहीं कहते वो सर वाह वाह कर के निकल जायं और कोई सवाल न करें क्यूँ कि वो बेचारे ग़ज़ल को निभा नहीं सकते??
साहित्यिक चर्चा को और तन्कीद को हमला करार देना  उस अधिनायकवादी वृत्ति का परिचायक है जो सिर्फ जयजयकार सुनना पसंद करती है .. और जब ऐसा होता है तो सीखने की , समझने की क्षमता और विवेक नष्ट हो जाता है और फिर यही अनावश्यक लाड-प्यार  कथित औलादों को बिगाड़ भी देता है.
और वो कहें जिनकी ग़ज़लें ....... इस वाक्य को पूरा करते तो बेहतर होता... लेकिन शायद आपमें बात खुलकर कहने का हौसला नहीं है... खैर...
कोई हज़ार ग़ज़लें कह चुका हो या लाख. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.. इस विधा में संख्या नहीं क्वालिटी मायने रखती है... काश आप यह साधारण बात समझते तो ऐसा न  कहते..
अस्तु;

खेत-खलिहान

************

बुला रहा है मुझे वो बचपन, वो खेत खलिहान याद आएं।
पुकारता है गुलों को गुलशन, वो खेत खलिहान याद आएं।

सफ़ेद गैयाँ की काली बछिया, भरा तबेला अनेक भैंसें
जिन्होंने पाला था दे के अमृत, जिन्हें मनाया कभी सताया।
चला था घर से मैं शहर को जब, उदास वो भी थी साथ माँ के,
दही मलाई वो दूध मक्खन, वो खेत खलिहान याद आएं।

जहाँ से अमरूद तोड़ते थे, चिढ़ा के माली को भागते थे।
कभी बचे भी, कभी पिटे भी, शरारतों से न बाज आते।
अभी भी क्या कोई ऐसा बच्चा, अभी भी माली है क्या उसी सा,
बिना हमारे है कैसा उपवन, वो खेत खलिहान याद आएं।

जहाँ पे होता था इक बिठौड़ा, वहाँ पे क्या है, बताओ थोड़ा।
खजूर के पेड़ नीचे बिल था, दिखा जहाँ पर, न साँप कोई ।
पके से जामुन, वो आम कच्चे, निम्बोरियों को बनाना कंचे,
वहीं पे बैठा है मेरा छुटपन, वो खेत खलिहान याद आएं।

हुआ है क्या ये, कहाँ मैं आया, गया था जो छोड़ कुछ न पाया।
न मिट्टी है और, न पेड़ पौधे, बनाई किसने यहां कलोनी।
उजाड़ डाला किसी ने बचपन, मिटा दी मिट्टी की सौंधी खुशबू
मिटाऊं कैसे ये दिल की तड़पन, वो खेत खलिहान याद आएं।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
13 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service