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सहमत हूँ आदरणीय टिप्पणियाँ वाकई लेखक के लिए प्राणवायु का काम करती हैं और समयाभाव के कारण मैं भी दोषी हूँ और इसी क्रम में अच्छी रचनाओं को पढने से वंचित भी .....क्षमाप्रार्थी हूँ
आदरणीय बागी भाई जी , एक पत्थर को सुन्दर मूर्ति बनाने के लिये जितनी ज़रूरत छेनी के सधे हुये चोट की होती है , उतना ही आवश्यक रचनाकारों को निखरने के लिये संतुलित प्रतिक्रियाओं की होती है । आलोचना और सराहना का एक संतुलित मिश्रण परम आवश्यक है । एक का अधिकार दूसरे का कर्तव्य होता है , अगर कोई कर्तव्य समझें ही न तो अधिकार बेमानी है ।
मुझे लगता है कर्तव्य न समझने वालों को उनके अधिकारों से भी वंचित रखा जाना एक संतुलित सीख हो सकती है , अगर संभव हो तो ऐसों की रचनाओं में प्रतिक्रियायें ब्लाक्ड किया जाना चाहिये , अगर ये मंच को व्यवहारिक लगे तो । सादर
aआदरणीय आपकी बातों से मैं सहमत हूँ ..सादर
आदरणीय बागी सर मैं आपसे बिलकुल सहमत हूँ ..लेखक या कवी को उसकी रचना पर एक टिप्पड़ी मिल जाए तो उसका उत्साह बढ़ता है और अपनी कमियों के बारे में जानकारी मिलने से अगले प्रयासों में आसानी होती है कई दिनों से ये बात दिल मेंथी लेकिंग कभी इस तरह से कहने का साहस नहीं हुआ ..आपका लेख पढ़कर लगा इस बिषय में हमारी भावनाओं को आपने शब्द दे दिए ..आपको इसके लिए कोतिसः धन्यवाद सादर
ओबीओ के संस्थापक आदरणीय गणेश जी बागी जी ने महत्वपूर्ण प्रश्न - क्या हम सभी रचनाओं पर अपनी टिप्पणी न देकर लेखको का हकमारी नहीं कर रहे है ? रखकर सार्थक चर्चा करने का अवसर प्रदान किया जिस पर प्रबुद्ध जागरूक सदस्यों ने सार्थक विचार प्रस्तुत किये है, जिन्हें पढ़कर प्रस्न्न्नता हुई | मेरे विचार से "जो पढेगा वही अच्छा लिख पायेगा" के लिए रचनाओं को पढ़कर टिपण्णी द्वारा अपने विचार प्रकट करने से न केवल रचनाकार को अपनी रचना के बारे जानकारी और सुझाव ही मिलते हैम बल्कि पढने वाले के प्रत्युत्तर के माध्यम से उसकी रचना पर सोच के बारे में जानकारी होती है और विचार संवर्धन भी होता है | इसलिए "संवाद कौशल"(communication स्किल)के लिए, साहित्य वृद्धि और साहित्य सेवा भाव विकसित करने के लिए समयानुसार जहां तो हो रचनाएं पढने और समालोचनात्मक टिपण्णी करने की आदत लाभकारी औषधि की तरह समझना चाहिए | शुभ शुभ |
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला सर आपने बहुत अच्छी बात कही है- "संवाद कौशल"(communication स्किल)के लिए, साहित्य वृद्धि और साहित्य सेवा भाव विकसित करने के लिए समयानुसार जहां तो हो रचनाएं पढने और समालोचनात्मक टिपण्णी करने की आदत लाभकारी औषधि की तरह समझना चाहिए
मेरे मन के भाव समझने के लिए हार्दिक आभार आपका श्री मिथिलेश वामनकर जी | सदर
मान्यवर बागी जी आप का कथन पूर्णतया सत्य है लेकिन साथ मे यह भी आवश्यक नहीं की जो हम सोचते हैं वह हु बहू वैसा ही हो कभी कभी कुछ विपरीत देखने को मिलता है तो वह भी हमारे जीवन का अबिभिन्न अंग है आशा अच्छे की करना चाहिए फिर भगवान पर छोड़ देना चाहिए ।
बिलकुल सही फरमाया "बागी'" जी आपने ,किसी की रचना पढ़ने पर जैसे भी भाव जगें ,भले ही चंद शब्दों में सही ,अवश्य टिपणी रूप में पोस्ट किये जाने चाहियें Iइस से रचनाकार को संवल मिलता हैIहमें इस पर अवश्य गौर करना चाहिए Iकिसी भी साधना रत इंसान की साधना के प्रति किसी भी साधक का यह बहुत बड़ा उपकार होगा Iआपके प्रयासों के लिए साधुवाद I
मैंने जनवरी 2015 में ओबीओ पर एक शपथ ली थी सोचा उसे फिर से दुहरा लूँ-
"मैं तब तक अपनी कोई नई रचना ब्लॉग पोस्ट नहीं करूँगा, जब तक कि 25 रचनाएँ पढ़कर टिप्पणी न कर दूँ."
इस शपथ को मैंने अब तक यानी जनवरी 2017 तक तो निभाया है.
मैं तो अपनी कोई भी रचना ब्लॉग पोस्ट करने से पहले अन्य रचनाकारों की रचनाओं पर प्रतिक्रिया देता हूँ. और आप?
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