For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।
 
पिछले 46 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-47

विषय - "सत्यमेव जयते"

आयोजन की अवधि- 12 सितम्बर 2014, दिन शुक्रवार से 13 सितम्बर 2014, शनिवार की समाप्ति तक  (यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)


बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए.आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक ही दे सकेंगे, ध्यान रहे प्रति दिन एक, न कि एक ही दिन में दो. 
  •  रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.


सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो  12 सितम्बर 2014,दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तोwww.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालिका 
डॉo प्राची सिंह 
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 10378

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

शीर्षक पर सार्थक गजल रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री अखंड गहमरी जी 

वतन पर मर मिटे है जो उन्‍हें दुश्‍मन बताते है
छुपा कर सच किताबो से गलत राहे दिखाते है.....................बहुत खूब !

आदरणीय अखंड गहमरी जी सादर, कई सच हैं जिन पर परदे पड़े हैं मगर वे पर्दों में से भी झांकते हैं क्योंकि वे सच हैं. सुन्दर रचना पर बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.

आयोजन की रचनाएँ पढते-पढते आखिर मैंने भी लिख ही लिया कविता जैस कुछ  :-))))  --
.
.
समय की पीठ पर बैठ पुराने समय की कुछ स्मृतियाँ -

न जाने किस समय की चली पहुँची हैं मेरे समय तक !

उनका स्वागत करने से पहले -

मैं डरता हूँ कि कोई राजाज्ञा तो नहीं छपी अखबार में ,

कहीं पुरानी नीतियों का विलोम न हो नया संविधान !

 

जबकि -

पुराने लोगों के हाथों में आज भी अधमिटी तख्तियाँ हैं ,

पुरानी किताबों में लिखा है कि सत्य जीतता है आखिर !

 

अदालत के बाहर फुटपाथ पर बैठा कोई सत्य -

सर रख सो जाता है “सत्यमेव जयते” लिखी तख्ती पर !

न्याय के लिए ठहरी सत्य की अकेली साँसें -

तारीख से चलकर रुक जाएँगी तारीख से कुछ पहले ही !

न्याय और सत्य का व्यवहार अब नहीं रहा समानुपाती !

 

संभवतः -

पुराने आदर्श न हो सकेंगे जीने का समकालीन तरीका !

अच्छा है कि पुराने ग्रंथों पर जमी रहे धूल की परत !

पुराने सूत्रों का प्रयोग खतरा है नई प्रयोगशाला के लिए !

जबकि बदल गए हों प्रयोग के लक्ष्य ,

बढ़ गई हों दूरियाँ प्रयोगशाला और पुस्तकालय के बीच !

 

मैं नए समय में खोज रहा हूँ पुरानी स्मृतियों के अर्थ !

पाता हूँ कि हारने वाला हो ही नहीं सकता सच्चा ,

दरअसल , सत्य तो वो है जो जीत जाता है आखिरकार !
.
.
.
अरुण श्री !
"मौलिक व अप्रकाशित"

मैं नए समय में खोज रहा हूँ पुरानी स्मृतियों के अर्थ !

पाता हूँ कि हारने वाला हो ही नहीं सकता सच्चा ,

दरअसल , सत्य तो वो है जो जीत जाता है आखिरकार ! --- बहुत सही कहना है आदरणीय , जो जीता वही सच | आपको रचना के लिए दिली बधाई |
.

धन्यवाद सर !

प्रिय अरुणजी

जब भी पढता हूँ i आपकी कविता झकझोरती है i आज भी वही चुभन -

 

पुराने आदर्श न हो सकेंगे जीने का समकालीन तरीका !

अच्छा है कि पुराने ग्रंथों पर जमी रहे धूल की परत !

पुराने सूत्रों का प्रयोग खतरा है नई प्रयोगशाला के लिए !

जबकि बदल गए हों प्रयोग के लक्ष्य

 

मैं नए समय में खोज रहा हूँ पुरानी स्मृतियों के अर्थ !

पाता हूँ कि हारने वाला हो ही नहीं सकता सच्चा ,

दरअसल , सत्य तो वो है जो जीत जाता है आखिरकार

 

जी चाहता है सर से टोपी उतार लूं  फिर नमन करूं i सस्नेह i

 

 

सत्य की हो जाती है मौत, तब मिलता है न्याय।

उसी पल नया जनम होता है, फिर सहता अन्याय॥

हार्दिक बधाई, अरुण भाई 

बहुत धन्यवाद सर !

मैं इसे अपना सौभाग्य कहूँगा ! सादर !

यह एक पाठकीय आश्वस्ति है कि कविता अरुण श्री की है तो उसे पढ़ा नहीं जाता, उसे गुनना होता है.

हर ’जीतने वाले’ की भंगिमाओं में छिपे तिर्यक भाव यों शब्दबद्ध नहीं हो जाते. ’जीता हुआ मंतव्य’ कनखियों से ताकता हुआ यों शब्दकारी नहीं पाता.
सत्यम् इव जयते, न अनृतं .. और जोर की चपत लगती है ! गाल क्या आत्मा तक तिलमिला उठती है.

पाठक को यदि भोगे हुए यथार्थ से गुजरने की ’लत’ न हो तो उसे भान तक न होगा कि इन अनुभूतियों के पीछे चुभता हुआ दंश विद्रुप ही सही लगातार आकार पाता रहा है !.. रात-रात भर की कवायद !

गुम हुई संज्ञाओं की निर्निमेष आँखों में, कहते हैं, असहायपन हुआ करता है. किन्तु यह किसी अकर्मण्य की विमूढ़ता नहीं होती, बल्कि व्यवहार में लगातार अशक्त होते चले जाने की पीड़ा हुआ करती है. सत्य के प्रति फिर क्या भाव हों ?

ऐसे गूढ़ भाव को शब्द भी मिले तो कैसे ! देखना समीचीन होगा --
पुराने लोगों के हाथों में आज भी अधमिटी तख्तियाँ हैं ,
पुरानी किताबों में लिखा है कि सत्य जीतता है आखिर !

अदालत के बाहर फुटपाथ पर बैठा कोई सत्य -
सर रख सो जाता है “सत्यमेव जयते” लिखी तख्ती पर !

इस रचना को ’कविता जैसा कुछ’ कह कर कवि ने हम जैसे पाठकों की भी खबर ली है. अच्छा भी है. पाठक यदि अपनी केंचुल न उतारें, तो विचार-प्रवाह में अपेक्षित तारतम्यता का तेजस अपनी रौनक खोता हुआ, मद्धिम होता चला जाता है. ऐसा होना न तो रचना के लिए, न ही रचनाकार के लिए अच्छा है. साहित्य के लिए तो कदापि नहीं.

पुराने आदर्श न हो सकेंगे जीने का समकालीन तरीका !
अच्छा है कि पुराने ग्रंथों पर जमी रहे धूल की परत !
पुराने सूत्रों का प्रयोग खतरा है नई प्रयोगशाला के लिए !
जबकि बदल गए हों प्रयोग के लक्ष्य ,
बढ़ गई हों दूरियाँ प्रयोगशाला और पुस्तकालय के बीच !
यथार्थ को पुनः नये संदर्भ मिले हैं !

प्रस्तुति की पंक्तियों की धार को महसूस करता हुआ अतिशय बधाइयाँ दूँगा, भाई अरुण श्री.
शुभ-शुभ

//गुम हुई संज्ञाओं की निर्निमेष आँखों में, कहते हैं, असहायपन हुआ करता है. किन्तु यह किसी अकर्मण्य की विमूढ़ता नहीं होती, बल्कि व्यवहार में लगातार अशक्त होते चले जाने की पीड़ा हुआ करती है//

मुझे अचम्भा होता है कि कैसे आप कविता की व्याख्या करते-करते मेरी मनोस्थिति को ठीक-ठीक पढ़ लेते हैं ! मैं अपनी विवशता ही समझता हूँ इसे कि मैं सिर्फ कविताएँ लिखता हूँ या लिखने की कोशिश करता हूँ ! आगे क्या कहूँ ?? हालाँकि  अपनी कविता का उदहारण देना अच्छी बात नहीं लेकिन फिर भी मेरी ही एक कविता की पंक्तियाँ कि -

//मैं मनुष्यता के दुर्दिनों का साक्षी मात्र हूँ ! 
अदालतें बंद हैं इन दिनों !
थाने की दीवार पर लिखा है कि शांति बनाए रखें कृपया !
मुझे “वर्ना” समझ आता है सरकारी “कृपया” का अर्थ !
मैं अपनी गवाहियाँ चौराहे के कूड़ेदान में फेंक कर लौटा हूँ !//

//मुझे अचम्भा होता है कि कैसे आप कविता की व्याख्या करते-करते मेरी मनोस्थिति को ठीक-ठीक पढ़ लेते हैं //

आप से आग्रह है, अनुज, आप ऐसी पंक्ति मेरे लिए फिर कभी नहीं लिखेंगे.
जीवन में ऐसे क्षण आते हैं, जब कई अभिव्यक्त हुई पंक्तियों से स्वयं पर घृणा होने लगती है. यह पंक्ति भी एक ऐसी ही पंक्ति है.
कारण और कारक पर कभी प्रश्न न करियेगा. हम सभी रचनाकार हैं, पंचतंत्र की कहानियों वाले शृगालों के वंशज नहीं. किन्तु ऐसे पुच्छहीन जातों से घिरे अवश्य हैं..

रचनाओं की गहन अभिव्यक्ति और अंतरनिहित तीव्रता ही एक पाठक से अपना अपेक्षित अंश ले लेती है.

हमने न कुछ कहा, न हमने कुछ समझा... 

आप अत्यंत संवेदनशील हैं, सो डर भी लगता है.. . अपने भाग्य से.. . 
शुभ-शुभ

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"उस दफ़्तर में ये अविनाश है कौन? यह संकेत स्पष्ट नहीं हो सका। चपरासी है या बाबू? स्नेहा तो…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"कारण (लघुकथा): सरकारी स्कूल की सातवीं कक्षा में विद्यार्थी नये शिक्षक द्वारा ब्लैकबोर्ड पर लिखे…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सादर नमस्कार आदरणीय। 'डेलिवरी बॉय' के ज़रिए पिता -पुत्र और बुज़ुर्ग विमर्श की मार्मिक…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। लघु आकार की मारक क्षमता वाली लघुकथा से गोष्ठी का आग़ाज़ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"डिलेवरी बॉय  मई महीने की सूखी गर्मी से दिन तप गया था। इतने सारे खाने के पैकेट लेकर तीसरे माले…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है। यह लघुकथा पाठक को गहरे…"
9 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान'मैं सुमन हूँ।' पहले ने बतया। '.........?''मैं करीम।' दूसरे का…"
10 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"स्वागतम"
16 hours ago
Nilesh Shevgaonkar joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। विलम्ब से उत्तर के लिए…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service