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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-46 (विषय:मोह)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-46 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है, प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-46
"विषय: "मोह" 
अवधि : 29-01-2019  से 30-01-2019 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

इस उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ आदरणीय सुरेन्द्र जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.

आदरणीय महेंद्र कुमार जी बेहतरीन लघुकथा..।

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय कनक हरलालका जी. हार्दिक आभार. सादर.

 आदरनीय मुहेंद्र जी, बहुत ही कमाल की लघुकथा के लिए बधाई कुबूल करें । 

हृदय से आभारी हूँ आदरणीय मोहन बेगोवाल जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.

राजकपूर की इसी नाम वाली फिल्म की ही कहानी कह दी है आपने तो आदरणीय महेन्द्र जी

क्षमा चाहूँगा आदरणीया प्रतिभा जी। फ़िल्म से सिर्फ़ कहानी की थीम ली है। बाकी पूरी कहानी अलग है। वैसे इस बिन्दु पर आदरणीय योगराज सर के विचार भी जानना चाहूँगा। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। सादर आभार।

इस लघुकथा के पार्श्व में भले ही उस फिल्म की कहानी लगती हो, लेकिन ट्रीटमेंट और प्रस्तुति एकदम भिन्न हैI कथा के मध्य में दिया गया कल्पनाशीलता का पुट लिए सारा विवरण (मेरी और डेविड के बीच संवाद, मरीना का ख़त जलाना और मीनू का राजू को पहचानने से ही इंकार कर देना) फिल्म से एकदम अलग हैI और फिर अंत में राजू जोकर की मौत, यह सब भाई महेंद्र कुमार जी की कल्पना शक्ति का प्रमाण हैंI यही चीज़ें इस लघुकथा को विशिष्ट बनाती हैंI   

त्वरित प्रत्युत्तर एवं अनुमोदन हेतु हृदय से आभारी हूँ सर. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.

बेहद मार्मिक दुखांत ,बेहतरीन रचना  के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा,आदरणीय महेंद्र सरजी।

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया बबिता जी. हृदय से आभारी हूँ. सादर.

बेहतरीन लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय महेंद्र जी , सादर 

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