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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-43 (विषय: "आजकल")

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-43 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है, प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-43
"विषय: "आजकल" 
अवधि : 30-10-2018  से 31-10-2018 
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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जितनी सुविधा उतनी दुविधा ,ओह!माता पिता अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति इतने लापरवाह हो जाते है कि वे भूल जाते है कि वे कहाँ हैं ।उम्दा कथा के लिये बधाई आद० ओम भाई जी ।

आदरणीय नीता कसारजी दीदी कभीकभी मैं भी इतना खो जाता हूँ कि श्रीमती जी आवाज़ देती हैं और मुझे भी पता नहीं चलता हैं. आभार आप का इस शानदार मत के लिए.

आदरणीय ओमप्रकाश जी। बहुत ही सुंदर तरीके से आपने मोबाइल के (दुर) उपयोग पर चित्रण किया है। कई मुश्किलों को तो हम स्वयं ही आमंत्रण देते हैं। सुविधाओं को दुविधाओं में बदल देने की आदत कई बार औरों के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर देती है। जब हमने समाचार पत्रों में पढ़ा कि मोबाइल बना तलाक का कारण या मोबाइल की लत बिगाड़ रही बच्चों को तो हमने भी इस पर लिखने का विचार किया, परंतु इतना अच्छा नहीं लिख पाए। कम शब्दों में गंभीर बात आपने समाज तक पहुंचाने का प्रयास किया। सीखने के क्रम में आप सभी पढ़ते हुए हमने भी लिखने की कोशिश की है। कृपया सुधारों से अवश्य की अवगत कराने की कृपा कीजिएगा।
धन्यवाद। आशीर्वाद का अभिलाषी

आदरणीय आशीष श्रीवास्तव जी आप की विस्तृत प्रतिक्रिया पा कर मन प्रसन्न हो गया. आजकल मोबाइल घर बिगाड़ने के साथसाथ जोड़ने का कार्य भी कर रहे हैं. इस के दूरूपयोग पर आप की प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.

आदाब। //शौचालय में कुत्ता बैठा हुआ था.// इस पंक्ति और /फ़र्श/, /आवेग/ आदि के माध्यम से कम शब्दों में कही-अनकही अभिव्यक्ति सहित बहुत बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रीय 'प्रकाश' साहिब। शीर्षक कोई नवीन भी हो सकता है।

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आप ने बहुत बढ़िया बात कहीं. शीर्षक और भी हो सकता था. शुक्रिया इस सुझाव के लिए. हार्दिक आभार आप का.

आ. भाई ओमप्रकाश जी, आधुनिक जीवनशैली में जीते हुए हम किस तरह कर्तव्यविमुख हो रहे हैं इसको बयान करती अच्छी कथा हुयी है । हार्दिक बधाई ।

आदरणीय  लक्ष्मण धामी जी आप ने ठीक फ़रमाया. आधुनिक जीवन शैली ने लाभ के साथ हानि के साधन भी मुहैया कराए हैं. यह हमारे ऊपर हैं कि हम उस का किस तरह इस्तेमाल करते हैं. हार्दिक आभार आप का  अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए.

वर्तमान में इस दीवानगी ने बहुत नुक्सान करना शुरू कर दिया है, बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर. इस तरह की खूब रचनाएँ पढ़ने को मिल रही हैं आजकल, बहुत बहुत बधाई आ ओम प्रकाश जी

आदरणीय विनय कुमार जी आप का कहना बहुत सही है. इस दीवानगी ने बहुत नुकसान किया हैं. हार्दिक आभार आप का , मुझे प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए.

वास्तव में आज हम मोबाइल कल्चर में कैद होकर रह गए हैं।  बहुत ही बढ़िया सम्प्रेषण।  हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश जी।

आदरणीय नीलम उपाध्याय जी आप का हार्दिक आभार मेरी लघुकथा पर अपनी प्रतिक्रिया दे कर मेरी हौसलाअफजाई करने के लिए.

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