आदरणीय साथिओ,
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परिवार में वृद्धों की अवेलहना दुखद है , प्रदत्त विषय से न्याय करती रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीया अर्चना जी
आदरणीय अर्चना जी बहुत पुरानी कहावत है 'सहज पके सो मीठा होय' लघुकथा को पकने के लिए समय देना आवश्यक होता है। बेशक कथानक बढ़ीया था परन्तु प्रस्तुति इतनी बढ़ीया नहीं बन पाई । सादर
सच है स्नेह की आधी रोटी भी तृप्ति देती है। अच्छी कथा हुई है, बधाई प्रेषित है।
बहुत सुंदर रचना... अभावों में स्नेह का उजाला,भावुक करती पंक्ति, बधाई
आदरणीया अर्चना जी, कथानक का विषय बहुत अच्छा लिया गया है | आपने बहुत कम संवादों में एक बड़ी कथा को समेटनी की कोशिश की है| इसमें कुछ और संतुलन की जरुरत है| आखिरी पंक्तियों में दिया गया सन्देश अच्छा है| आ. सुनील जी और आ. रवि जी की टिप्पणी का संज्ञान अवश्य लें|
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