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लघुकथा ---वसीयत (अनकहा )
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ठाकुर शमशेर सिंह के पारिवारिक वकील मोहन को उनकी मौत के बाद जैसे ही पता
चला कि उनके बेटों अनिल और सुनील के बीच जायदाद के बटवारे को लेकर विवाद
शुरू हो गया , वो फ़ौरन उनके घर पर पहुँच गये |
वकील को देखते ही अनिल ,सुनील और उनकी माता पूछ्ने लगे " वकील साहिब कैसे आना हुआ "
वकील ने फ़ौरन जवाब दिया "जायदाद के बटवारे में विवाद की सुन कर चला आया "
माताजी आह भरती हुई बोलीं "ठाकुर साहिब मरने से पहले मुझसे कह गये थे कि बटवारा कैसे
करना है , वो बेटियों को भी हिस्सा देना चाहते थे ,मगर बेटे इसके लिए राज़ी न थे "
वकील ने हमदर्दी दिखाते हुए कहा "ठाकुर साहिब जीते जी घर में कोई विवाद नहीं चाहते थे "
अनिल और सुनील बीच में ही बोल पड़े," फिर यह बटवारा कैसे होगा "
वकील ने फ़ौरन जेब से एक लिफ़ाफ़ा निकाल कर माताजी को देकर कहा ," आप लोगों का
बटवारा अब इस से होगा "
माता जी ने आश्चर्य से फिर पूछा ," इस में क्या है "
वकील ने जवाब दिया ,"ठाकुर साहिब की वसीयत "
वकील यह कहते हुए चले गये कि जो जीतेजी ठाकुर साहिब नहीं कर सके वो इस में लिखा
हुआ है --------
(मौलिक व अप्रकाशित )
उम्दा लघुकथा, हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ० तसदीक़ अहमद खान जी.
हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी। लाज़वाब लघुकथा।
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