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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-27 (विषय: भंवर)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पिछले  26 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, वह सच में हर्ष का विषय हैI कठिन विषयों पर भी हमारे लघुकथाकारों ने अपनी उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कींI विद्वान् साथिओं ने रचनाओं के साथ साथ उनपर सार्थक चर्चा भी की जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन हुआI इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-27 
विषय: "भंवर"
अवधि : 29-06-2017 से 30-00-2017 
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि भी लिखे/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
5. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
6. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
7. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
8. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
9. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

हार्दिक धन्यवाद
दौलत से सुख साधन ख़रीदे जा सकते है पर बच्चे का बचपन और भविष्य दाँव पर लगाना अक़्लमंदी नही है।संदेशप्रद कथा के लिये बधाई आद० सीमा सिंह जी ।
शुक्रिया नीता जी
Umda chitran hua hai Adarniya seema ji.Hardik badhayi .
शुक्रिया दीदी

भागदौड़ भरी आजकल की जिंदगी में हम कुछ पाने की आशा में कितना कुछ खो देते हैं, इसका पता ही नहीं चलताI भौतिक सुख कोमल भावनात्मक नजदीकी का स्थान कभी नहीं ले सकता अत: आपने सही कहा है कि इसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकतीI लघुकथा न केवल प्रदत्त विषय को ही परिभाषित कर रही है बल्कि एक मार्मिक सन्देश देने में भी सफल रही है जिस हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है सीमा सिंह जीI     

शुक्रिया सर, आपका अनुमोदन हौसला देता है।
बच्चों को सबसे अधिक चाहिये माता पिता का समय और उसी के मामले मे आधुनिक माता पिता कंगाल हैं, सुन्दर कथा बधाई प्रिय सीमा जी
बढ़िया लघुकथा है आ. सीमा जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। वैसे अभी इसमें थोड़े से संपादन की गुंजाईश है। सादर।
मुहतर्मा सीमा साहिबा, प्रदत्त विषय पर सुन्दर लघुकथा हुई है, मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें

प्रिय सीमा जी, प्रदत्त विषय पर बहुत अच्छी सामयिक लघु कथा लिखी है पति पत्नि दोनों का काम करना बच्चे की जैसे तैसे परवरिश करना फिर एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप करना यूँ ही बहुत कुछ हो रहा है आज कल |बहुत बहुत बधाई आपको इस सुंदर प्रस्तुति पर |

आजकल की ज़िन्दगी में यही तो हो रहा है, माँ बाप बस मशीन बने हुए हैं, चाहे खुद के लिए या बच्चों के लिए| एक वर्तमान समस्या को इंगित करती बहुत बढ़िया रचना विषय पर, बहुत बहुत बधाई आपको 

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