आदरणीय साथिओ,
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आभार आदरणीया रश्मि जी।
आभार आदरणीया नयना (आरती ) जी।
आभार आदरणीय तस्दीक अहमद साहब।
'आदत' को केंद्र में रखकर बढ़िया संदेशप्रद लघुकथा लिखी है आपने आदरणीय डॉ. टी. आर. सुकुल जी. मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. कुछ छोटी-मोटी टंकणगत त्रुटियाँ हैं उन्हें देख लीजिएगा, जैसे : //उन सबसे यह पूछने में व्यस्त थीं कि ‘‘आज क्या पकाया गया है, घर के सभी कमरों को ठीक ढंग से धोया गया है कि नहीं, सभी ने स्नान कर लिया या नहीं?‘// सादर.
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ टी आर सुकुल जी। लाज़वाब लघुकथा।प्रदत्त विषय पर, परिवार में मृत्यु शैया पर लेटी दादी के प्रति अन्य सदस्यों की सोच पर लिखी बेहतरीन संदेशप्रद रचना।
भीड़
दिन भर आग उगलने के बाद थका - मांदा सूरज पुराने तालाब मे डुबकी लगने को आतुर तेजी से ढ़लता जा रहा था । गोधूली बेला मे सभी अपने नीड़ की तरफ बढ़ चले । घंटो से नूरा को ढ़ूंढ़ती हताश फातिमा और रजिया भी हलकान हो घर को चल पड़ीं ।
" अम्मी ओ अम्मी , नूरा आ गयी क्या ? " फातिमा ने टेर लगाई ।
" नहीं तो , तुम्हारे साथ ही तो थी । क्यों , क्या हुआ ? " फरजाना चुन्नी से हाथ पोछती बाहर आई ।
" हाँ ! हम उसे नहला कर वहीं पोखर के पास छोड़ कपड़े धोने लग गयीं थीं फिर आते वक्त बहुत ढ़ूंढ़ा पर ." रजिया रूआंसी हो उठी।
"ओह ! अब तो अंधेरा हो गया , अब क्या होगा ?" अनजानी आशंका से कांप उठी फरजाना ।
" क्या हो गया ? " रहीम मियां अंदर आते हुए सबसे मुखातिब हुए ।
" अब्बा , वो नूरा नहीं मिल रही शाम से ।" रजिया बोली ।
"क्या ? या खुदा ! कहीं कुछ ...." कहते हुए दौड़ कर रहिम मियां बाहर निकले और अपने पड़ोसी रहमत और लल्लन को आवाज दी । कुल जमा तीन घर हीं थे बस्ती में इनके । सब जानकर दोनों डंडा और रस्सी लिए आ गये । रहीम मियां टॉर्च लिए लपकते से निकलने को हुए कि पड़ोस मे रहने वाले रामदीन मास्टर साहब ने टोका " क्या हुआ ? ये कहां की तैयारी ? "
" मास्टर जी , वो अपनी नूरा नही मिल रही शाम से । कल्लू चमार की नजर कब से उस पर लगी है ...हमेशा कहता है बूढ़ी गौ रख कर क्या फायदा ...इसे मुझे बेच दे । "
कहते हुए एक खौफ सा छा गया रहीम की आँखों में । रुंधे गले से बोला " आप तो जानते हो की वो हमारे घर की सदस्य जैसी है । उसी को ढ़ूंढने जा रहे हैं ।"
" बाहर बहुत अंधेरा है , कल सुबह ढ़ूंढ़ लेना ।" मास्टर जी ने गंभीरता से कहा ।
" अंधेरा ? आज तो पूरे चांद की रात है मास्टर जी , फिर ये टॉर्च भी तो है ..." उतावला होता रहीम बोला ।
" पूरे चांद से लोगों के दिमाग का अंधेरा नही जाएगा मेरे भाई ! नूरा को कुछ नही होगा , उसे बचाने के नाम पर सौ हाथ खड़े हो जाएंगे , भले उस भीड़ मे कल्लू चमार भी क्यों न हो , पर ..."
एक पल को रूक कर उन्होंने रहीम के कंधे पर हाथ रखते हुए भीगी आवाज मे कहा " अभी रात मे तुम सभी को नूरा के साथ देख कर तुम्हारे सच पर कोई यकीन न करेगा , और न बचा पाएगा ....भले उस भीड़ में मैं भी क्यों न होऊं । "
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