आदरणीय साथिओ,
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कथा बहुत अच्छी हुई है आदरणीया अपरिजिता जी , थोड़े पात्र ज्यादा लगे | कृपया अन्यथा न लीजियेगा | सादर |
अरे इतने ज्यादा पात्र? रज़िया, फातिमा, फरजाना, रहीम, रहमत, लल्लन, रामदीन, कल्लू - उफ्फ!! बन्दा कथा समझे कि पात्रों के नाम के साथ कबड्डी खेले? रचना का विषय एकदम नया है, अंत में सन्देश भी बहुत बढ़िया है, लेकिन सम्प्रेष्ण बेहद कमज़ोर. इस रचना में ज़बरदस्त सम्पादन की आवश्यकता है. जातिसूचक शब्द प्रयोग करने से पहले 100 दफा सोचें. बहरहाल सम्पादन का नीचे इशारा दे रहा हूँ, ज़रा देखिएगा. आयोजन में सहभागिता हेतु अभिनन्दन प्रेषित है अपराजिता जी.
दिन भर आग उगलने के बाद थका-मांदा सूरज पुराने तालाब मे डुबकी लगने को आतुर तेजी से ढ़लता जा रहा था। गोधूली बेला मे सभी (सभी कौन?) अपने नीड़ की तरफ बढ़ चले । घंटो से नूरा को ढ़ूंढ़ती हताश फातिमा और रजिया भी हलकान हो घर को चल पड़ीं ।
" अम्मी ओ अम्मी , नूरा आ गयी क्या ? " फातिमा ने टेर लगाई ।
" नहीं तो , तुम्हारे साथ ही तो थी । क्यों , क्या हुआ ? " अम्मी फरजाना चुन्नी से हाथ पोछती बाहर आई ।
" हाँ ! हम उसे नहला कर वहीं पोखर के पास छोड़ कपड़े धोने लग गयीं थीं फिर आते वक्त बहुत ढ़ूंढ़ा पर ." रजिया फातिमा रूआंसी हो उठी।
"ओह ! अब तो अंधेरा हो गया , अब क्या होगा ?" अनजानी आशंका से अम्मी कांप उठी फरजाना ।
" क्या हो गया हुआ? " रहीम मियां अंदर आते हुए अब्बा ने अन्दर आते हुए पूछाI सबसे मुखातिब हुए ।
" अब्बा , वो नूरा नहीं मिल रही शाम से ।" रजिया फातिमा बोली ।
"क्या ? या खुदा ! कहीं कुछ ...." कहते हुए दौड़ कर रहिम मियां अब्बा बाहर निकले और अपने पड़ोसी रहमत और लल्लन को आवाज दी । कुल जमा तीन घर हीं थे बस्ती में इनके । सब जानकर दोनों डंडा और रस्सी लिए आ गये । रहीम मियां टॉर्च लिए लपकते से निकलने को हुए कि पड़ोस मे रहने वाले रामदीन मास्टर साहब ने टोका " क्या हुआ ? ये कहां की तैयारी ? "
" मास्टर जी , वो अपनी नूरा नही मिल रही शाम से । कल्लू चमार कसाई की नजर कब से उस पर लगी है ...हमेशा कहता है बूढ़ी गौ रख कर क्या फायदा ...इसे मुझे बेच दे । "
कहते हुए एक खौफ सा छा गया रहीम की आँखों में । रुंधे गले से बोला " आप तो जानते हो की वो हमारे घर की सदस्य जैसी है । उसी को ढ़ूंढने जा रहे हैं ।"
" बाहर बहुत अंधेरा है , कल सुबह ढ़ूंढ़ लेना ।" मास्टर जी ने गंभीरता से कहा ।
" अंधेरा ? आज तो पूरे चांद की रात है मास्टर जी , फिर ये टॉर्च भी तो है ..." अब्बा ने उतावले स्वर में कहा उतावला होता रहीम बोला ।
" पूरे चांद से लोगों के दिमाग का अंधेरा नही जाएगा मेरे भाई ! नूरा को तो कुछ नही होगा , उसे बचाने के नाम पर सौ हाथ खड़े हो जाएंगे , भले उस भीड़ मे कल्लू कसाई चमार भी क्यों न हो , पर ..."
“लेकिन क्या?”
एक पल को रूक रुkककर उसके उन्होंने रहीम के कंधे पर हाथ रखते हुए मास्टर जी ने कहा: भीगी आवाज मे कहा
" अभी इस रात मे तुम सभी को तुम्हें नूरा के साथ देख कर कोई तुम्हारे सच पर न तो कोई यकीन न करेगा, और न बचा ही पाएगा ....भले उस भीड़ में मैं भी क्यों न होऊं । "
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