परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 170 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |
इस बार का मिसरा जनाब 'मुज़फ़्फ़र वारसी' साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |
'इज़्ज़त को दुकानों से ख़रीदा नहीं जाता'
मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन
221 1221 1221 122
हज़ज मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
रदीफ़ --नहीं जाता
क़ाफ़िया:-अलिफ़ का(आ स्वर ) देखा,
रोका, सोचा, झाँका, नापा आदि
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 28 अगस्त दिन बुधवार को हो जाएगी और दिनांक 29 अगस्त दिन गुरुवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
जनाब समर कबीर
(वरिष्ठ सदस्य)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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सबका स्वागत है ।
आदाब मुहतरम समर कबीर साहिब
सादर अभिवादन आदरणीय।
आदरणीय उस्ताद-ए-मुहतरम साहिब को सादर चरणस्पर्श 🙏
आदरणीय सर जी सादर अभिवादन
आदाब! उस्ताद-ए-मुहतरम
सादर अभिवादन आदरणीय
ग़ज़ल ~ 221 1221 1221 122
जलता है जिगर फिर भी अँधेरा नहीं जाता
अफ़सोस तिरी सम्त उजाला नहीं जाता
अब ध्यान किसी और प मेरा नहीं जाता
इक चहरा तसव्वुर से निकाला नहीं जाता
तुम तर्क-ए-वफ़ा के ज़रा दस्तूर तो सीखो
हो जिससे महब्बत उसे कोसा नहीं जाता
अम्मी की दुआ साथ मिरे चलती है हरदम
जाता हूँ जहाँ भी मैं अकेला नहीं जाता
नाचे है महब्बत की ये सुर ताल प ख़ुद ही
दिल को ये हुनर यार सिखाया नहीं जाता
तनख़्वाह कभी मर्द की पूछी नहीं जाती
क्या उम्र है औरत से ये पूछा नहीं जाता
मुमकिन है बचाते हुए हम डूब भी जाएँ
पर अपनों को मझधार में छोड़ा नहीं जाता
बाज़ी है महब्बत की ये चौसर की नहीं है
दिलबर को हरा कर यहाँ जीता नहीं जाता
गुरु द्रोण का आशीष अगर सर पे न हो तो
सीधा किसी अर्जुन का निशाना नहीं जाता
भगवान उसे भक्त की श्रद्धा है बनाती
यूँ ही किसी पत्थर को तो पूजा नहीं जाता
दिल जीत के लोगों का ये मिलती है 'अमित जी'
" इज़्ज़त को दुकानों से ख़रीदा नहीं जाता "
( मौलिक व अप्रकाशित )
आदरणीय अमित जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें।
भाई अमित जी
अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें।
आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। बहुत अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
जनाब अमित जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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