आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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//दो साल पहले ही मैंने अपनी घिनौनी मर्दानगी का गला घोंट कर ज़मीर का बोझ हल्का करने के लिए यह रूप अख़्तियार किया है?"//
प्रायश्चित का ये रूप अन्दर तक हिला गया ..हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय समर कबीर जी ..सादर
मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती हुई और समाज को आईना दिखाती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
सुभानअल्लाह !! इसके बाद कुछ भी कहना शेष नहीं रह जाता . दिली मुबारकबाद क़ुबूल फरमाइए जनाब !
आदरणीय समर कबीर साहिब ! मेरे पास शब्द नहीं हैं कि मैं इस लघुकथा के बारे में कुछ लिख सकूं। कमाल! कमाल! कमाल! इतनी सधी और कसी हुई लघुकथा ! गज़ब कर दिया आदरणीय । ओबीओ पर प्रकाशित सर्वश्रेष्ठ लघुकथाओं में से एक इस लघुकथा के बारे में कुछ कहना सूरज को दीपक दिखाने वाले बात होगी। शीर्षक 'अहसास' बेहतरीन शीर्षक चयन है। कथा का प्रस्तुतिकरण व बिना किसी अनावश्यक विस्तार के जो कथ्य का प्रभाव सम्प्रेषण्ा हुआ है उसका घनीभूत प्रभाव इस लघुकथा को चार चांद लगा रहा है। आम तौर पर लघुकथा में एक ही चरम बिन्दु होता है परन्तु आपकी लघुकथा दोहरा डंक मार रही है।
//मेरे इस कृत्य के कारण उसने आत्महत्या कर ली थी। उसे फाँसी के फंदे पर झूलते देख मेरा पाप मुझे कचोटने लगाI मैं गाँव से से ग़ायब हो गया और दूर एक शहर में जाकर मेहनत मज़दूरी करने लगाI"// लघुकथा यदि यहां भी समाप्त हो जाती तो भी विषय से न्याय कर पाती, परन्तु
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//"दो साल पहले ही मैंने अपनी घिनौनी मर्दानगी का गला घोंट कर ज़मीर का बोझ हल्का करने के लिए यह रूप अख़्तियार किया है?"
"मगर तुम तो ख़ुद को जो पहले ही सज़ा दे चुके थे, फिर इतना कड़ा फैसला क्यों?"
आखों में आँसू भर रुंधे हुए गले से राकेश ने उत्तर दिया: "
क्योंकि दो साल पहले ही मुझे पता लगा कि पुजारिन की वह बदकिस्मत बेटी, मेरे बेटे को राखी बाँधती थीI//
इन पंक्ितयों ने लघुकथा को साधारण श्रेणी से उठाकर इसे शिखर तक पहुंचा दिया। इतना सूक्ष्म चित्रण ! सुभान अल्लाह! साहब आप मेरे रूबरू होते तो आपके हाथ चूम लेता। लघुकथा पढ़ कर ना सिर्फ आंखों में आंसू आए बल्िक रौंगटे खड़े हो गए। शीर्षक से लेकर अंतिम पंक्ित में एक भी अनावश्यक शब्द ना होना इसकी सफलता बता रहे हैं। अभिसृष्ट विषय को पूर्णरेपण प्रतिपूरयति करती इस अज़ीम लघुकथा के लिए आपको ह्दय से शुभकामनाएं निवेदित है । सादर
गोष्ठी की पहली तीन रचनाएँ ऐसी हैं जो अन्य रचनाओं पर अपनी ऊर्जा डाल दें तो बची हुई सारी रचनाएँ अपने-आप ही निखर उठे... आपकी इस रचना में जो आखिरी में ट्वीस्ट आया है... उसका कोई मुकाबला नहीं... दिली बधाई कबूल फरमाएं जनाब
आदरणीय समीर कबीर साहिब ! लघु कथा को एक स्वांस में ही पढ़ गया | इतनी रोचकता ,इतना कौतुक जगाने वाला लघुकथा हो सकती है ,पहले कभी पढ़ा नहीं ! बहुत सुन्दर | दिली बधाई स्वीकार करें |
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