आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
विषय : "पर्यावरण"
आयोजन अवधि- 15 जून 2024, दिन शनिवार से 16 जून 2024, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.
ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.
अति आवश्यक सूचना :-
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 15 जून 2024, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।
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(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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गजल (विषय- पर्यावरण)
2122/ 2122/212
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धूप से नित है झुलसती जिंदगी
नीर को इत उत कलपती जिंदगी।१।
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पेड़ काटे कारखानों के लिए
छाँव को हरपल तड़पती जिंदगी।२।
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खा रही उपवन हमारी लालसा
शेष गमलों में लटकती जिंदगी।३।
*
पेड़ बिन ताजी हवा मिलती नहीं
यूँ है एसी में सिमटती जिंदगी।४।
*
झील नदिया गन्दगी से पाटकर
साँस गिनती है सिसकती जिंदगी।५।
*
वो घने बरगद न ही हैं नीम अब
यूकेलिप्टस को झगड़ती जिंदगी।६।
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कौन समझे अब 'मुसाफिर' पीर ये
गाद बन रुकती उफनती जिंदगी।७१।
*
(मौलिक/अप्रकाशित)
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।
आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई।
भाई लक्षमण जी
एक अरसे बाद आपकी रचना पर आना हुआ और मन मुग्ध हो गया
पर्यावरण के क्षरण पर बहुत धारदार अशआर हुए हैं
हर शेर के साथ एक बोनस शेर मेरा भी स्वीकार करें
धूप से नित है झुलसती जिंदगी
नीर को इत उत कलपती जिंदगी।१।
मौसम का सच चाहे इतना ही क्रूर हो पर आस हर मन में यही है
......................................................छाँव सी शीतल सरसती ज़िन्दगी
......................................................नीर बन झर-झर बरसती ज़िन्दगी
पेड़ काटे कारखानों के लिए
छाँव को हरपल तड़पती जिंदगी।२।
बहुत दुखद है , लेकिन सभ्यताएँ पर्यावरण को पुनर्स्थापित करें तो परिदृश्य कुछ यूं बदल जाएगा
......................................................कोंपलें धारे नवल नित गोद में
......................................................रौशनी बन कर चमकती जिंदगी
खा रही उपवन हमारी लालसा
शेष गमलों में लटकती जिंदगी।३।
अपने ही घर आँगन को हमने सीमेंट पत्थर से पाट दिया काश कि वृक्ष लगाने के स्थान भी घर पर हम सुरक्षित संरक्षित रख सकें
.......................................................एक झूला बीच आँगन में लिए
.......................................................नीम बन भीनी महकती ज़िन्दगी
पेड़ बिन ताजी हवा मिलती नहीं
यूँ है एसी में सिमटती जिंदगी।४।
उफ़... पर काश
...................................................तितलियाँ जुगनू परिंदे झूमते
...................................................बूँद सी ताज़ा थिरकती ज़िन्दगी
झील नदिया गन्दगी से पाटकर
साँस गिनती है सिसकती जिंदगी।५।
प्रदूषण नें जल स्रोतों को भी लील लिया, एक्शन प्लान सब फायलों में बढ़ते रहे..
...................................................हर लहर ही जिंदगी का नृत्य है
...................................................................बूँद बन पल-पल धड़कती जिंदगी
वो घने बरगद न ही हैं नीम अब
यूकेलिप्टस को झगड़ती जिंदगी।६।
विलायती प्रजातियों नें पर्यावरण को बहुत क्षति पहुंचाई है, फिर भी
.................................................आम पीपल और बरगद के तले
.................................................बुद्ध का बुद्धत्व बनती जिंदगी
कौन समझे अब 'मुसाफिर' पीर ये
गाद बन रुकती उफनती जिंदगी।७१।
मर्मस्पर्शी शेर
...............................................पीर सागर पार करती नाव सी
...............................................डूबती फिर-फिर सम्हलती ज़िन्दगी
वाह एक से बढ़कर एक बोनस शेर। वाह।
आ. प्राची बहन , सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति, स्नेह व मनोहारी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार।
//एक झूला बीच आँगन में लिए
नीम बन भीनी महकती ज़िन्दगी //
अरे वाह ! क्या कहने, शानदार, बहुत खूब आदरणीया प्राची जी।
वाह वाह, क्या शानदार शुरुआत हुई है, बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई है, सभी अशआर एक से बढ़ कर एक हैं, गमला वाला शेर मुझे बहुत पसंद आया। इस खूबसूरत अभिव्यक्ति पर दाद कुबूल करें आदरणीय लक्ष्मण भाई जी।
आ. भाई गणेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई।
आ. भाई सुरेश जी, हार्दिक धन्यवाद।
आवश्यक सूचना:-
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