For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163

विषय : "पर्यावरण"

आयोजन अवधि- 15 जून 2024, दिन शनिवार से 16 जून 2024, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.


ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 15 जून 2024, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें

मंच संचालक

ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम परिवार

Views: 589

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

गजल (विषय- पर्यावरण)
2122/ 2122/212
*******
धूप से नित  है  झुलसती जिंदगी
नीर को इत उत कलपती जिंदगी।१।
*
पेड़  काटे   कारखानों   के  लिए
छाँव को हरपल तड़पती जिंदगी।२।
*
खा रही  उपवन  हमारी लालसा
शेष गमलों  में  लटकती जिंदगी।३।
*
पेड़ बिन ताजी हवा मिलती नहीं
यूँ है  एसी  में  सिमटती  जिंदगी।४।
*
झील नदिया गन्दगी  से पाटकर
साँस गिनती है सिसकती जिंदगी।५।
*
वो घने बरगद  न  ही  हैं नीम अब
यूकेलिप्टस  को  झगड़ती जिंदगी।६।
*
कौन समझे अब 'मुसाफिर' पीर ये
गाद  बन रुकती  उफनती  जिंदगी।७१।
*
(मौलिक/अप्रकाशित)

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।

आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई।

भाई लक्षमण जी 
एक अरसे बाद आपकी रचना पर आना हुआ और मन मुग्ध हो गया 
पर्यावरण के क्षरण पर बहुत धारदार अशआर हुए हैं 

हर शेर के साथ एक बोनस शेर मेरा भी स्वीकार करें 

 

धूप से नित  है  झुलसती जिंदगी
नीर को इत उत कलपती जिंदगी।१।
मौसम का सच चाहे इतना ही क्रूर हो पर आस हर मन में यही है 
......................................................छाँव सी शीतल सरसती ज़िन्दगी 
......................................................नीर बन झर-झर बरसती ज़िन्दगी 
पेड़  काटे   कारखानों   के  लिए
छाँव को हरपल तड़पती जिंदगी।२।
बहुत दुखद है , लेकिन सभ्यताएँ पर्यावरण को पुनर्स्थापित करें तो परिदृश्य कुछ यूं बदल जाएगा 
......................................................कोंपलें धारे नवल नित गोद में 
......................................................रौशनी बन कर चमकती जिंदगी 
खा रही  उपवन  हमारी लालसा
शेष गमलों  में  लटकती जिंदगी।३।

अपने ही घर आँगन को हमने सीमेंट पत्थर से पाट दिया काश कि वृक्ष लगाने के स्थान भी घर पर हम सुरक्षित संरक्षित रख सकें 
.......................................................एक झूला बीच आँगन में लिए 
.......................................................नीम बन भीनी महकती ज़िन्दगी 
पेड़ बिन ताजी हवा मिलती नहीं
यूँ है  एसी  में  सिमटती  जिंदगी।४।
उफ़... पर काश 

...................................................तितलियाँ जुगनू परिंदे झूमते 
...................................................बूँद सी ताज़ा थिरकती ज़िन्दगी 
झील नदिया गन्दगी  से पाटकर
साँस गिनती है सिसकती जिंदगी।५।
प्रदूषण नें जल स्रोतों को भी लील लिया, एक्शन प्लान सब फायलों में बढ़ते रहे..
...................................................हर लहर ही जिंदगी का नृत्य है
...................................................................बूँद बन पल-पल धड़कती जिंदगी

वो घने बरगद  न  ही  हैं नीम अब
यूकेलिप्टस  को  झगड़ती जिंदगी।६।

विलायती प्रजातियों नें पर्यावरण को बहुत क्षति पहुंचाई है, फिर भी

.................................................आम पीपल और बरगद के तले

.................................................बुद्ध का बुद्धत्व बनती जिंदगी  


कौन समझे अब 'मुसाफिर' पीर ये
गाद  बन रुकती  उफनती  जिंदगी।७१।

मर्मस्पर्शी शेर

...............................................पीर सागर पार करती नाव सी

...............................................डूबती फिर-फिर सम्हलती ज़िन्दगी

 

वाह एक से बढ़कर एक बोनस शेर। वाह।

आ. प्राची बहन , सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति, स्नेह व मनोहारी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार।

//एक झूला बीच आँगन में लिए 
नीम बन भीनी महकती ज़िन्दगी //

अरे वाह ! क्या कहने, शानदार, बहुत खूब आदरणीया प्राची जी। 

वाह वाह, क्या शानदार शुरुआत हुई है, बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई है, सभी अशआर एक से बढ़ कर एक हैं, गमला वाला शेर मुझे बहुत पसंद आया।  इस खूबसूरत अभिव्यक्ति पर दाद कुबूल करें आदरणीय लक्ष्मण भाई जी।  

आ. भाई गणेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई।

आ. भाई सुरेश जी, हार्दिक धन्यवाद।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
".इक सज़ा है कि जिये जाऊँ ये दुनिया देखूँ वो जो होता ही नहीं है उसे होता देखूँ. . मेरे अन्दर भी…"
39 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय धामी जी।सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए। गिरह में एक नए नजरिये से बात रखी आपने। ग़ज़ल हेतु बधाई।"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय Euphonic Amit जी सादर नमस्कार। इतनी बारीकियों से इंगित कराने हेतु आपका आभार। सचमुच बहुत…"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"सम्माननीय शुक्ला जी। ग़ज़ल तक आने व प्रतिक्रिया हेतु आपका आभार व्यक्त करता हूँ। जी आपने त्रुटि पर…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आदरणीय सुनेन्द्र नाथ जी उत्तम गीत के लिये बहुत बहुत बधाई "
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय DINESH KUMAR VISHWAKARMA जी आदाब  ग़ज़ल कुछ वक़्त और मश्क़ चाहती है। 2122 1122 1122…"
3 hours ago
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय दिनेश जी तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है मुबारक बाद पेश है ।  दूसरे शेर में इमारत…"
6 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"2122 1122 1122 22/112 जहाँ इंसाफ़ भी बिकता हो वहाँ क्या देखूँबेबसी है मैं ग़रीबी का तमाशा देखूँ चैन…"
6 hours ago
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आादरणीय लक्षमण धामी जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है इसके लिये बधाई स्वीकार करें । "
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"नमस्कार,  शुभ प्रभात, भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर 'धामी' जी, कोशिश अच्छी की आपने!…"
9 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब!अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"लोक के नाम का  शासन  ये मैं कैसा देखूँ जन के सेवक में बसा आज भी राजा देखूँ।१। *…"
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service