For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 153 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |

इस बार का मिसरा जनाब 'दाग़' दहलवी साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

'आप के मिलने का होगा जिसे अरमाँ होगा'

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन/फ़इलुन

2122 1122 1122 22/112

बह्र-ए-रमल मुसम्मन सालिम मख़बून महज़ूफ़

रदीफ़ --होगा

क़ाफ़िया:-(आँ का)
अहसाँ,महमाँ,आसाँ, दरमाँ, परेशाँ आदि

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 24 मार्च दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 24 मार्च दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 3632

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आ. लक्ष्मण जी, अच्छी ग़ज़ल हुई।  बधाई स्वीकारें।

आ. भाई जैफ जी, सादर अभिवादन। उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।

ग़ज़ल के उम्दा प्रयास पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय लक्ष्मण धामी जी। सादर।

2122 1122 1122 22/112

अपना गर हाल-ए-परेशाँ ये नुमायाँ होगा
क्या मुहब्बत में हुआ देख के हैराँ होगा 1

वो जो चाहेगा तो बीमार रहेगा हरदम
और गर चाह लिया जल्द ही दरमाँ होगा 2

दिल की ख़्वाहिश है कि दीदार तेरा मिल जाए
आज की शाम जो मिलना हुआ एहसाँ होगा 3

ज़िन्दगी भर के लिए कौन तेरा देगा साथ
कुछ दिनों के लिए आया जो वो महमाँ होगा 4

इश्क़ करता है मगर कहता नहीं है मुझसे
राज़ दिल में कहीं उसके ये भी पिंहाँ होगा 5

मुश्क़िलातों ने कमर तोड़ दी उसकी लेकिन
जो अभी तक है खड़ा ख़ूब वो इंसाँ होगा 6

हमको ख़ुशियाँ न सही ग़म ही मिले तो बहतर
दीजिए उनको ख़ुशी इसका जो ख़्वाहाँ होगा 7

दाद मत दीजिए पर ऐब "रिया" से कहिये
आपके वास्ते ये काम तो आसाँ होगा 8

गिरह-


इक झलक आपकी देती है सुकूँ इस दिल को
"आप के मिलने का होगा जिसे अरमाँ होगा'

"मौलिक व अप्रकाशित"

आदरणीया ऋचा यादव जी ग़ज़ल अभी और मश्क़ चाहती है .सादर 

आदरणीय अनिल जी

बहुत शुक्रिया ग़ज़ल तक आने के लिए, जी ज़रूर कोशिश करुँगी बहतर कहने की

सादर

आदरणीय Richa Yadav जी आदाब 

तरही मिसरे पर ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें।

अपना गर हाल-ए-परेशाँ ये नुमायाँ होगा

क्या मुहब्बत में हुआ देख के हैराँ होगा 1

( कौन देख कर हैराँ होगा?)

सुझाव-

तुझ पे जब हाल कभी मेरा नुमायाँ होगा

क्या महब्बत (में हुआ/ने किया) देख के हैराँ होगा 

कौन कहता है वो बीमार रहेगा हरदम

वो अगर चाहे मरज़ जल्द ही दरमाँ होगा 2

दिल की ख़्वाहिश है कि दीदार तेरा *हो* जाए

दिल की ख़्वाहिश है कि दीदार-ए-सनम हो जाए

आज की शाम तू मिल जा तेरा एहसाँ होगा 3

ज़िन्दगी भर के लिए साथ तेरा देगा कौन

हर बशर चार दिनों का ही तो महमाँ होगा 4

इश्क़ करता है मगर कहता नहीं है मुझसे 

राज़ दिल में कहीं उसके ये भी पिंहाँ होगा 5

( सानी और बेहतर करने का प्रयास करें )

दौर-ए-गर्दिश ने कमर तोड़ दी उसकी लेकिन

जो अभी तक है खड़ा ख़ूब वो इंसाँ होगा 6 

मुश्किलातों ग़लत है मुश्किलात सहीह शब्द है

और अपने आप में बहुवचन भी है 

 

हमको चाहत नहीं ख़ुशियों की 'रिया' जी लेकिन 

ढूँढिए कोई तो इन ख़ुशियों का ख़्वाहाँ होगा 7

दाद मत दें 'रिया' को ऐब ही गिनवाएँ उसे 

आपके वास्ते ये काम तो आसाँ होगा 8

गिरह-

इक झलक आपकी देती है सुकूँ इस दिल को

"आप के मिलने का होगा जिसे अरमाँ होगा'

( गिरह के साथ न्याय नहीं हुआ )

// सादर //

आदरणीय अमित जी

बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल को बारीकी से देखने समझाने बताने और सुझाव के लिए बहुत पसंद आये सुझाव ग़ज़ल में निखार आ गया

सादर

5 के सानी के लिए प्रयास किया है देखियेगा

2122 1122 1122 22/112
तुझ पे जब हाल कभी मेरा नुमायाँ होगा
क्या महब्बत में हुआ देख के हैराँ होगा 1

कौन कहता है वो बीमार रहेगा हरदम
वो अगर चाहे मरज़ जल्द ही दरमाँ होगा 2

दिल की ख़्वाहिश है कि दीदार-ए-सनम हो जाए
आज की शाम तू मिल जा तेरा एहसाँ होगा 3

ज़िन्दगी भर के लिए साथ तेरा देगा कौन
हर बशर चार दिनों का ही तो महमाँ होगा 4

इश्क़ करता है मगर कहता नहीं है मुझसे
दिल के तहख़ाने में ये राज़ भी पिंहाँ होगा 5

हमको चाहत नहीं ख़ुशियों की 'रिया' जी लेकिन 
ढूँढिए कोई तो इन ख़ुशियों का ख़्वाहाँ होगा 7

दाद मत दें 'रिया' को ऐब ही गिनवाएँ उसे 
आपके वास्ते ये काम तो आसाँ होगा 8

आ. रिचा जी, अभिवादन। इस बार लगता है आपने जल्दबाजी में प्रस्तुत की है। फिलहाल प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।

आदरणीय लक्ष्मण जी 

बहुत शुक्रिया आपका, बेहतरी के लिए प्रयासरत रहूंगी

सादर

आदरणीय Richa जी 

पिन्हाँ की जगह नुमायाँ क़ाफ़िये का प्रयोग करें।

इस भाव के साथ कि

"जो इश्क़ उसके दिल के तहख़ाने में छुपा है उसे वो कब ज़ाहिर करेगा"

दूसरी बात 

मैंने 7वें और 8वें शे'र में आपका नाम इस्तेमाल किया है

आप चाहें तो किसी एक से अपना तख़ल्लुस हटा सकती हैं 

नहीं तो ऐसे भी ठीक है // सादर//

 

आदरणीय अमित जी, नमस्कार

बहुत धन्यवाद समझ गई आपकी बात देखियेगा सानी फिर कहा है, और 

2 मक़्ते भी लिखे जा सकते हैं इसलिये दोनों में नाम रहने दिया है, आभार आपका

सादर

राज़-ए-दिल मुझपे कभी उसका नुमायाँ होगा

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सुशील भाईजी, इन पाँच  सुंदर  मुकरियाँ के लिए हार्दिक बधाई। अंतिम की अंतिम पंक्ति…"
31 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मिथिलेश भाईजी,  हार्दिक बधाई इन पाँच मुकरियों के लिए | मेरी जानकारी के अनुसार सभी पदों…"
47 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह-मुकरी * प्रश्न नया नित जुड़ता जाए। एक नहीं वह हल कर पाए। थक-हार गया वह खेल जुआ। क्या सखि साजन?…"
12 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कभी इधर है कभी उधर है भाती कभी न एक डगर है इसने कब किसकी है मानी क्या सखि साजन? नहीं जवानी __ खींच-…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय तमाम जी, आपने भी सर्वथा उचित बातें कीं। मैं अवश्य ही साहित्य को और अच्छे ढंग से पढ़ने का…"
20 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय सौरभ जी सह सम्मान मैं यह कहना चाहूँगा की आपको साहित्य को और अच्छे से पढ़ने और समझने की…"
22 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह मुकरियाँ .... जीवन तो है अजब पहेली सपनों से ये हरदम खेली इसको कोई समझ न पाया ऐ सखि साजन? ना सखि…"
23 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"मुकरियाँ +++++++++ (१ ) जीवन में उलझन ही उलझन। दिखता नहीं कहीं अपनापन॥ गया तभी से है सूनापन। क्या…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"  कह मुकरियां :       (1) क्या बढ़िया सुकून मिलता था शायद  वो  मिजाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"रात दिवस केवल भरमाए। सपनों में भी खूब सताए। उसके कारण पीड़ित मन। क्या सखि साजन! नहीं उलझन। सोच समझ…"
yesterday
Aazi Tamaam posted blog posts
Friday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service