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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-14 (विषय: षडयंत्र)

आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,

सादर नमन।
 
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के 14 वें अंक में आपका स्वागत हैI "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पहले तेरह आयोजन बेहद सफल रहे। नए पुराने सभी लघुकथाकारों ने बहुत ही उत्साहपूर्वक इनमें सम्मिलित होकर इन्हें सफल बनाया कई नए रचनाकारों की आमद ने आयोजन को चार चाँद लगाये I इस आयोजनों में न केवल उच्च स्तरीय लघुकथाओं से ही हमारा साक्षात्कार हुआ बल्कि एक एक लघुकथा पर भरपूर चर्चा भी हुईI  गुणीजनों ने न केवल रचनाकारों का भरपूर उत्साहवर्धन ही किया अपितु रचनाओं के गुण दोषों पर भी खुलकर अपने विचार प्रकट किए, जिससे कि यह गोष्ठियाँ एक वर्कशॉप का रूप धारण कर गईं। इन आयोजनों के विषय आसान नहीं थे, किन्तु हमारे रचनाकारों ने बड़ी संख्या में स्तरीय लघुकथाएं प्रस्तुत कर यह सिद्ध कर दिया कि ओबीओ लघुकथा स्कूल दिन प्रतिदिन तरक्की की नई मंजिलें छू रहा हैI तो साथिओ, इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है....
 
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-14
विषय : "षडयंत्र"
अवधि : 30-05-2016 से 31-05-2016 
(आयोजन की अवधि दो दिन अर्थात 30 मई 2016 दिन सोमरवार से 31 मई 2016 दिन मंगलवार की समाप्ति तक)
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो  30 मई  दिन सोमवार लगते ही खोल दिया जायेगा)
.
अति आवश्यक सूचना :-
१. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
२. सदस्यगण एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
३. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
४. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
५. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी लगाने की आवश्यकता नहीं है।
६. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
७. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
८. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
९. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं। रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें।
१०. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
११. रचना/टिप्पणी सही थ्रेड में (रचना मेन थ्रेड में और टिप्पणी रचना के नीचे) ही पोस्ट करें, गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी बिना किसी सूचना के हटा दी जाएगी I
.
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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सुंदर प्रस्तुति | बधाई स्वीकारें आदरणीय |

आभार आदरणीया कल्पना जी।

आदरणीय मननजी , आपकी यह प्रस्तुति तनिक फैली हुई अवश्य है और कसावट की चाहना रखती है लेकिन इसकी विषयवस्तु अत्यंत प्रासंगिक और काल-सापेक्ष है. इस विषय पर कलम आज़माने के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया. 

शुभ-शुभ

लघुकथा : साज़िश
साधारण कागज़ से बनी हुई कमज़ोर सी एक पतंग काफी अरसे से डोर को बहुत आशापूर्ण नज़रों से देख रही थी I उस मज़बूत डोर पर पहले ही सैकड़ों पतंगों को सम्हालने का उत्तरदायित्व था, अत: पतंग के पास इंतज़ार के इलावा कोई चारा नहीं था I लेकिन एक दिन वह पतंग उस डोर के चरणों में गिरकर उसकी शरणागत हो गई I दयालु डोर ने भी उसका साथ निभाने का वादा कर लिया तथा पतंग के सिर पर हाथ रख दिया I डोर ने अपने अनुशासन के धागे से उसको बाँधा और धरती से उठा कर आकाश में उड़ाने लगा I किन्तु डोर की घोर विरोधी आवारा हवाओं से न तो उस पतंग की परवाज़ बर्दाश्त हुई और न ही डोर की सद्शयता I
“अरे तुम इतनी सुन्दर और प्रतिभावान पतंग होकर भी इस डोर की दासी क्यों बनी हुई हो?” आवारा हवा ने पतंग को वरगलाया I
”मुझे उन्होंने सहारा दिया है, उनके बिना मेरा क्या अस्तित्व?”
“पागल मत बनो! आसमान पर तुम उड़ती हो और श्रेय इस नकारा डोर को मिलता है I ज़रा सोचो पतंग महत्वपूर्ण है कि डोर?” निर्लज्ज आवारा हवा ने अगला पांसा फेंका I
“लेकिन मैं यह कैसे भूलूँ कि आसमान से मेरा परिचय उन्ही के कारण हुआ है?” पतंग ने यथार्थ ब्यान किया I
“अरे! ये तो तुझे सिर्फ सीमित ऊँचाई पर ही लेकर गया है, यदि तुम चाहो तो तुम सातवें आसमान तक जा सकती हो I”
“लेकिन मत भूलो कि मुझे अनुशासित कर उन्होंने मुझे नया जीवन दिया है I”
“नया जीवन? अनुशासन? हुँह! क्या यह सच नहीं कि पग-पग पर तुम्हें उसके कहे अनुसार ही चलना पड़ता है?” आवारा हवा ने अविश्वास के बीज बिखेरते हुए कहा I
“हाँ वह तो सच है, लेकिन.....”
“वह तुम्हारा इस्तेमाल करके खुद को महान साबित करना चाहता है I”
“लग तो मुझे भी रहा है, पर .......” अविश्वास के बीज अंकुरित हो रहे थे I
इससे पहले कि पतंग कुछ कह पाती, वह सामने से डोर को आते हुए देख मौन हो गई I आवारा हवा ने भी वहां से हवा होना ही उचित समझा I
“चलो मेरी प्यारी पतंग! उड़ने का समय हो चुका है I” डोर ने खुद को पतंग के आँचल से बांधते हुए कहा I
पतंग चुपचाप लेकिन अनमने डोर का हाथ पकड़ ऊपर उड़ने लगी I आवारा हवा के शब्द अभी भी उसके मन-मस्तिष्क में कौंध रहे थे I वह अचानक डोर की गिरफ्त से आज़ाद होने की कोशिश कर इधर उधर उड़ने लगी I
“अरे पतंगी रानी, क्या कर कर रही हो? दिशा से मत भटको वापिस आओ I” डोर ने भय मिश्रित स्नेह से चेताते हुए कहा I
“मुझे आज़ादी चाहिए आजादी! समझे?” पतंग ने लगभग चिल्लाते हुए कहा I
“तुम कागज़ की एक युवा पतंग हो, तुम्हें आज़ादी के अर्थ भी शायद नहीं मालूम, इसलिए अपने पुराने रास्ते पर वापिस आ जाओ भगवन के लिए I” अनुभवी डोर ने उसको यथार्थ से परिचित करवाने का प्रयत्न करते हुए कहा I
“नहीं! मुझे सातवें आसमान तक जाना है I” पतंग की महत्वाकांक्षा ने उत्तर दिया I
“आगे मत जाओ मेरी बच्ची, आगे खतरा है I” पतंग को बबूल के पेड़ों की तरफ बढ़ते देख डोर की चीख निकल गई I
“आगे बढ़ो, आगे बढ़ो पतंग रानी! शाबाश!! हमारे पीछे पीछे आओI” दूर खड़ा आवारा हवाओं का दल पतंग को उत्साहित कर रहा था I
पतंग डोर का साथ छोड़ हवाओं के पीछे हो ली I खूनी बबूल की झाड़ियों ने आवारा हवाओं का इशारा पाते ही पतंग को दबोच लिया I काँटों में उलझी पतंग धीरे धीरे दम तोड़ रही थी I आवारा हवाएँ विजयी भाव से एक दूसरे से हाथ मिला रही थीं, लेकिन डोर के आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे I
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
खूब सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय सर जी! आवारा हवायें तो हमेशा से जीतती आई हैं।बहुत अच्छी रचना । सादर नमन

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया राहिला जी.

ये तेज़ हवायें जो विभिन्न अवसरों पर शैतान का रूप धारण कर परिवार, समाज, राष्ट्र , रिश्तों, मोहब्बत - अख़लाक़, एकता, और साम्प्रदायिक सद्भाव रूपी पतंग को नीति-रीति, संस्कृति,सभ्यता,धर्म-कर्म रूपी डोर से जुदा करने की साज़िश रचती हैं। पतंग, डोर, नभ और सातवें आसमान के सुंदर, सार्थक व सटीक प्रतीकों के माध्यम से बेहद कसी हुई प्रवाहमय रुचिकर संवाद सहित सारगर्भित कृति में कथ्य बड़ी ख़ूबसूरती से उभर कर सम्प्रेषित हुआ है। हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय इंजी. गणेश जी 'बागी' जी। उड़ती पतंग, उलझती पतंग और कटती पतंग, डोर के दायित्व निर्वहन और हवाओं, आंधियों के माध्यम से लघुकथा सृजन करने का सौदाहरण प्रशिक्षण हमें यहाँ मिल सका है। सादर हार्दिक आभार।

आदरणीय शेख़ शहजाद उस्मानी जी, लघुकथा आप तक पहुँच सकी यह जानकार मन प्रसन्न है, अत्यधिक व्यस्तता के कारण गोष्ठी में सक्रिय नहीं हो पा रहा हूँ इसके लिए खेद है. बहुत बहुत आभार आपका.

आय हाय हाय हाय । क्‍या बात आदरणीय गणेश भाई । क्‍या बात कह गए । गजब । पुन: उपस्‍िथत होता हूं ।

बहुत बहुत आभार आदरणीय रवि भाई, आपका सदैव स्वागत है.

आदरणीय गणेशजी बागीजी जी प्रतीकों के माध्यम से सुन्दर लघुकथा बनी है . बधाई आप को इस लघुकथा के लिए.

सराहना एवं उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी.

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