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आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
विषय : वो काली रात
अवधि : 30-03-2025 से 31-03-2025
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

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स्वागतम

ध्वनि
लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब दीन -दुखियों में बांट देने की उसकी मंशा उसके आसपास खड़े शागिर्द लोग इंगित करते।कारवां यूं ही बढ़ता जाता। 'जय बाबा वैरागी,जय हो,जय हो' के उदघोष से वातावरण आंदोलित होता रहता।
उस रात भी बाबा की कुटिया के सम्मुख भक्त जनों का जमघट था।आशीष देते -देते हठात  ' बाबा नमन ' की ध्वनि सुन बाबा भाव विह्वल हो गया।उसकी आँखें भर आईं।बस बरसने की देर थी।समक्ष खड़ी रमणी झिझकती हुई पूछ बैठी,"क्यूं बाबा,क्या हुआ?आपके नेत्र सजल क्यूं हो गए?" पूरा जन -पारावार उत्कण्ठित हो जिज्ञासु नजरों से वह मार्मिक दृश्य देखने लगा था।बाबा मौन था।
"कुछ बोलिए प्रभु!आप चुप क्यूं हैं?"
"तुम कौन हो देवी?"बाबा ने पूछा।
"पहचानिए।"
"नहीं पहचान सकता।"
"क्यूं? देखिए तो।" ललना की भींगी हुई मधुर स्वर लहरी उभरी।
"यह कैसा सवाल है? बाबा किसी को नहीं देखते।" भक्त जन आक्रोशित हो चिल्लाए।
"नहीं देख सकता,देवी।बस सुन सकता हूं।"
"ओह!यह कैसे हुआ,देव?" बाबा के उभय नेत्र - कोटर की तरफ देखकर वह स्त्री चकराई।
"उसी रात जब  वे गुंडे तुम्हें ले जाने लगे।मैने भरसक विरोध किया।वे भारी पड़े।मेरी रात काली कर चले गए।"
"मौलिक एवं अप्रकाशित"

आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।

आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।

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"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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"आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन।बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
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