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बहुत बहुत आभार आदरणीय सतविंदर कुमार जी ।
कोई रंग बचा ही नहीं जैन साहब जो आपकी कथा में न आया हो। कुछ अशुद्धियाँ मुद्रण में हैं ,समय निकाल देखिएगा।
हार्दिक बधाई आदरणीय पवन जैन जी!बेहद सुन्दर और मार्मिक प्रस्तुति!जवान बेटी का बाप होना कितना धैर्य और जिम्मेवारी का कार्य है!हर क्षण सतर्क और चौकन्ना रहना होता है!लाज़वाब लघुकथा!
बहुत बहुत आभार आदरणीय तेज वीर सिंह जी।
अति सुन्दर लघुकथा आ० पवन जैन जी, सन्देश भी बहुत सार्थक दे रही हैI हार्दिक बधाई स्वीकार करेंI "पापा मैं सीता तो नहीं,पर लक्ष्मण रेखा मुझे दिखाई देती है।" यह पंच लाइन बहुत ज़बरदस्त हैI यदि इस पंक्ति से पहले पिता द्वारा कुछ कह दिया जाता तो रचना और प्रभावशाली भी हो जाती तथा अंतिम संवाद लम्बा होने से भी बाख जाताI बहरहाल इस प्रभावशाली रचना हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करेंI
बहुत बहुत आभार आदरणीय सर जी,कथा पर आपकी उपस्थिति से गौरवान्वित हुआ ।आपके सुझाव पर प्रयास करूंगा ।आपके उत्साह वर्धन एवं मार्गदर्शन दर्शन हेतु पुनः धन्यवाद् ।
रंग को परिभाषित करती सुंदर लघुकथा।बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
धन्यवाद आदरणीय माला जी ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय राजेन्द्र कुमार गौर जी ।
पापा मैं सीता तो नहीं,पर लक्ष्मण रेखा मुझे दिखाई देती है /'...बहुत सशक्त लघु कथा बुनी है आपने,बधाई स्वीकार करें आदरणीय पवन जैन जी
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