साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....
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दुश्मने जाँ कहा गया है मुझे।
ज़िन्दगी भर छला गया है मुझे।।
नर्म लह्ज़े में बात की उनसे।
फिर भी पत्थर कहा गया है मुझे।।
हिचकियाँ आ रही हैं रह रह कर।
याद शायद किया गया है मुझे ।।
जिसको मैं दिल से प्यार करता था।
छोड़ कर वो चला गया है मुझे।।
झूठ कह कर भी बिल्यकीं सच का।
आईना वो दिखा गया है मुझे।।
आंँख से अश्क अब नहीं गिरते।
"सब्र करना तो आ गया है मुझे"।।
जिसका जल्वा है सारे आलम में।
उसका आशिक़ कहा गया है मुझे ||
जब कि शादाब है मेरा ,गुलशन,।
नाम सहरा दिया गया है मुझे।।
मौलिक, अप्रकाशित
आप का बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम
जनाब अशफ़ाक अली साहिब आदाब,
ओपनिंग के लिए हार्दिक बधाई।
आप का बहुत बहुत शुक्रिया
आप का बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम
जनाब अशफ़ाक़ साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल है, बधाई स्वीकार करें ।
दूसरे और छटे शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ दोष है ।
मक़्ते का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है ।
आप का बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम समर कबीर साहब जोभी गलती है वो लिखदें मेहरबानी होगी
लिख तो दी भाई ।
बहुत-बहुत शुक्रिया
बेहतरीन आग़ाज़ और पेशकश हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब अशफ़ाक़ अली (गुलशन ख़ैराबादी) साहिब।
आप का बहुत बहुत शुक्रिया जनाब
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