For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-111

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 111वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब  अनवर शऊर साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"मुझे भी ये गुमाँ इक तजरबा होने से पहले था "

1222      1222      1222        1222 

मुफाईलुन    मुफाईलुन    मुफाईलुन    मुफाईलुन

(बह्र: बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम )

रदीफ़ :- होने से पहले था 
काफिया :- आ ( खुदा, जुदा , हवा, बुरा, फायदा आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 सितंबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 सितंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 सितंबर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 9770

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

जनाब दण्ड पानी साहिब, हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया 

आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। सुंदर प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई।

जनाब भाई लक्ष्मण धामी साहिब, आपकी इस इनायत का बहुत बहुत शुक्रिया 

तस्दीक़ अहमद साहब उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई 

आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब इस बेहतरीन गजल के लिए दिली मुबारकबाद कुबूल कीजिए

इरादा चूम लेने का खुदा होने से पहले था
कुलाँचे भर रहा ये मन फ़ना होने से पहले था।1

हुआ क्या और होगा क्या बताए कौन अब तुझको
इबादत का नशा सर पे खता होने से पहले था।2

खुली जब पोल दिलवर की जहाँ में ढ़ोल बजता है
बड़ा जलवा मुनव्वर का गिला होने से पहले था।3

लुटी किस्मत कभी कुछ काम आई क्या जमाने में?
शमा क्या पूजता कोई अमा होने से पहले था?4

तिजारत का सिपाही हो रहा हर शख्स दुनिया में
मुझे इस दौर का इमकां सजा होने से पहले था ।5

तबाही का सबब क्या चाँद हो सकता,लजीला है,
"मुझे भी ये गुमाँ इक तजरबा होने से पहले था।6

"मौलिक व अप्रकाशित"

आदरणीय manan जी , वाक्य विन्यास में और कुछ टंकण में त्रुटियाँ ग़ज़ल को अस्पष्ट कर रही हैं। पहले शेर का सानी वाक्य में नहीं बन सका।तीसरे शेर के सानी में भी मुझे ऐसा ही लगा। खता... ख़ता , ढ़ोल ... ढोल,सजा ...सज़ा सादर

आदरणीया,आपका क्या मतलब है, कह नहीं सकता।..सानी वाक्य में नहीं है, का भावार्थ/अर्थ स्पष्ट करें।वाक्य-विन्यास की बात मैं नहीं समझा। हाँ,संभव है....नुख्ते जभी-कभार दगा दे जाते हैं।

आदरणीय मनन जी , सर्वप्रथम तो आपसे मुआफ़ी माँगती हूँ क्यूंकि मुझे लग रहा है कि आपको मेरी टिप्पणी अच्छी नहीं लगी। हो सकता है मेरे कहने का तरीका भी ठीक न हो। समर sir के आदेशानुसार हर ग़ज़ल पर टिप्पणी करने की कोशिश करती हूँ हालांकि ख़ुद को इसके लायक नहीं समझती। अब मेरी पहली टिप्पणी की मतले का सानी वाक्य नही  बन सका मतलब वाक्य विन्यास में नहीं ढल सका। आपका वाक्य है कि " ये मन फ़ना होने से पहले कुलांचे भर रहा था " ,लेकिन बह्र में ढालने के लिए ये रदीफ़ ख़ासी मशक्कत माँग रहा है। आपने मात्राएँ निभाईं लेकिन अस्पष्टता आ गई। जैसा कि आपने समर sir की टिप्पणी की reply में लिखा कि अस्पष्ट टिप्पणियों पर भी चर्चा हो तो मैं ज़रूर अपनी टिप्पणी पर गुणीजन से चर्चा चाहूँगी। टंकण त्रुटि से शेर में अधूरापन यूँ तो नहीं होता लेकिन 5वें शेर के सानी में सजा और सज़ा का फ़र्क़ होने से शेर अस्पष्ट हो गया। वाक्य विन्यास की दिक्कत 3रे के सानी में भी आई थी लेकिन समयाभाव के कारण मेंशन नहीं किया था। आपसे एक बार फिर करबद्ध क्षमा चाहती हूँ। सादर

मुहतरमा अंजलि जी,ये मंच सीखने सिखाने के उद्देश्य से ही बनाया गया है,और यहाँ हर सदस्य को किसी भी रचना पर अपने विचार साझा करने का अधिकार प्राप्त है,इस लिहाज़ से आपकी टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण और सटीक है,अगर रचनाकार उससे सहमत नहीं तो इसका ये मतलब नहीं कि आपकी टिप्पणी ग़लत है,आपने जो भी इंगित किया वो बिल्कुल दुरुस्त है ।

हम यहाँ जो आलोचनात्मक टिप्पणी करते हैं उसका उद्देश्य ही ये होता है कि सीखें और सिखएँ,अगर रचनाकार उसका संज्ञान नहीं लेगा तो कोई और लेगा । 

आयोजन में आपकी सक्रियता और समर्पण सराहनीय है,और मैं इसके लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।

आदरणीय समर जी, आयोजन में सक्रियता का अपना महत्व है,परंतु वास्तविकता भी अपनी जगह कायम रहनेवाली चीज है।गद्य और पद्य या गजल में कुछ फर्क होता है। लय/धुन के हिसाब से भी वाक्य-विन्यास होता है, लाजिमी हो जाता है।इस पर भी गौर करना चाहिए।और हाँ, सजा और सज़ा में फर्क बहुत ज्यादा है।नुख्ता छूट जाने से सज़ा का मतलब सजाने से नहीं लिया जा सकता। मेरे उक्त शेर में 'सजा' संज्ञा की तरह प्रयुक्त है,न कि क्रिया की तरह।'सज़ा' संज्ञा है,जबकि 'सजा' सदा ही क्रिया है।इस तरह की भ्रांतिपूर्ण टिप्पणियों में हामी भरने से दुविधाओं को ही बल मिलेगा,सीखने-सिखाने को कभी बल नहीं मिलेगा।हमें हमेशा ही संज्ञा और क्रिया के फर्क को ध्यान में रखना चाहिए,सादर।

जनाब मनन जी,उर्दू शब्दों में नुक़्ते का महत्व बहुत अधिक है,यहाँ क्रया या संज्ञा का कोई प्रश्न नहीं है, जो शब्द जैसा है उसे वैसा ही लिखना चाहिए ।

पाठक को रचना जैसी लगेगी वो वैसी ही टिप्पणी करेगा,उसे आप मजबूर नहीं कर सकते,ओबीओ के आप पुराने सदस्य हैं,और ये बहतर समझते हैं कि यहाँ हर सदस्य अपनी बात कहने के लिये आज़ाद है ।

// भ्रांतिपूर्ण टिप्पणियों में हामी भरने से दुविधाओं को ही बल मिलेगा,सीखने-सिखाने को कभी बल नहीं मिलेगा।//

मैं अंजलि जी की टिप्पणी को 'भ्रांतिपूर्ण टिप्पणियों ' में

शामिल नहीं समझता,उन्हें ग़ज़ल का अच्छा ज्ञान है,अलबत्ता आपको अभी ग़ज़ल के बारे में बहुत कुछ सीखना शेष है ।

और हाँ, अब इस विषय पर मैं और कोई टिप्पणी नहीं करूंगा ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
23 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service