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“मन में भरो उजास” – कुण्डलिया छंद संग्रह

छंदकार – सुभाष मित्तल ‘सत्यम्’

प्रकाशक – बोधि प्रकाशन, जयपुर. (राज.)

मूल्य – रुपये 150/-

 

“बदलते परिवेश पर सत्यम् जी के उद्गार”

जिसने कवि गिरधर को पढ़ा है, जिसने काका हाथरसी को मंचों से कुण्डलिया छंद नुमा रचनाएं पढ़ते सुना है उसे अवश्य ही कुण्डलिया पढ़ना सुनना पसंद होगा. आज श्री त्रिलोकसिंह ठकुरेला जी के अथक प्रयासों से कई कुण्डलियाकार सक्रीय हुए हैं जिनमें डॉ. रमाकांत सोनी, डॉ.नलिन, गाफिल स्वामी, डॉ. तोताराम सरस, लक्ष्मण लड़ीवाला,डॉ. बघेल और भी कई वरिष्ठ और नवीन रचनाकार अपने कुण्डलिया छंदों के संग्रह प्रकाशित करवा रहे हैं. यदि आप श्रेष्ठ कुण्डलिया छंद पढ़ना चाहते हैं तो कवि सुभाष मित्तल ‘सत्यम्’ का यह संग्रह आपको अवश्य पढ़ना चाहिए.

 

“मन में भरो उजास” पुस्तक का यह शीर्षक स्वयं कविवर के विचार और संग्रह प्रकाशित करने के उद्देश्यों को मुखरित कर रहा है.

 

इस संग्रह में विषय अनुसार छह से लेकर चौबीस छन्द तक एक विषय पर हैं लगभग दो सौ कुण्डलिया छंदों की इस पुस्तक के अंत में विविध विषयों पर भी एक-एक कर सत्तावीस छंद रखे गए हैं.

 

कुंडलिया छंद जो एक मिश्रित छंद है जिसकी छह पंक्तियों में प्रथम दो पंक्तियाँ एक दोहा छंद होती हैं तथा शेष चार पंक्तियाँ रोला. इस छंद की विशेषता जिसके कारण सहज ही इस छंद को पहचाना जा सकता है वह दोहे के अंतिम चरण का हुबहू प्रयोग रोले वाले भाग को प्रारम्भ करने में किया जाता है. छह पंक्तियाँ किसी बात को कहने के लिए बहुत अधिक नहीं तो कम भी नहीं होतीं, इसकी एक बानगी कवि ‘सत्यम्’ की इस रचना में देखिये. जिसमें कवि ने गुरु के प्रति स्नेह व सम्मान प्रकट किया है.

 

पहले गुरुवर को नमन, वंदन बारम्बार |

जो देते आशीष नित, मिलता उनका प्यार ||

मिलता उनका प्यार, भरा जो उनके उर में |

होगा बेड़ा पार , फँसा जो भव सागर में |

‘सत्यम्’ मिलती शक्ति, ताकि मन हर दुख सहले |

ध्याऊँ प्रभु को किन्तु, नमन गुरुवर को पहले ||

 

कवि ‘सत्यम्’ का उद्देश्य रहा है गहन समस्याओं को उठाकर देश के नागरिकों को जागृत करना, आज प्रदूषण एक ज्वलंत समस्या है और इसके निराकरण के विषय में हर नागरिक को विचार अवश्य ही करना चाहिए. कवि ने छंद में अपनी बात किस तरह कही है देखें.

 

नित्य प्रदूषित हो रहे, मृदा, वायु औ नीर |

फ़ैल रहे नव रोग नित, बढ़ती जाती पीर ||

बढ़ती जाती पीर,  प्रदूषण विकट समस्या |

सोचें सब मिल आज, निवारण इसका है क्या ?

‘सत्यम्’ कहाँ भविष्य, नहीं जब आज सुरक्षित |

नाशक-कीट प्रयोग, कर रहा खाद्य प्रदूषित ||

 

 

 

‘सत्यम्’ भक्ति-भाव से भरे, देश प्रेमी और सामजिक रिश्तों में विश्वास करने वाले कवि हैं, तभी वे कहीं देश भक्ति का सन्देश देते दिखे तो कहीं रिश्तों के गिरते मूल्यों पर चिंतित और क्रोधित भी नजर आये हैं.

जब आप इस कुण्डलिया संग्रह को पढेंगे तो अवश्य ही कवि से सहमत होते हुए देश और समाज के निर्माण में सहयोग के लिए अपने विचारों को आगे बढाने में सहायक बनेंगे.

 

कवि ‘सत्यम्’ की अस्वस्थता के कारण पुस्तक प्रकाशित होते समय असावधानी रही जो रचनाओं में त्रुटियों का कारण बनी है, कवि ने इसे दूर करने का प्रयास करते हुए एक ‘त्रुटि-संशोधन’ पत्र पुस्तक के अंत में चस्पा किया है.

 

मैं कवि ‘सत्यम’ को शुभकामनाएँ देता हूँ.  मुझे आशा है आपने धैर्य से यह समीक्षा पढ़ी है तो यह पुस्तक भी अवश्य ही पढेंगे.

 

समीक्षक : अशोक कुमार रक्ताले,

५४, राजस्व कॉलोनी, उज्जैन-१० (म.प्र.)

मो. ०९८२७२५६३४३,   

 

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 कवि सुभाष मित्तल जी ‘सत्यम्’ को शुभकामनाएँ |

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