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सच कहा आपने | परन्तु पुत्रमोह से व्यथित पिता जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन पुत्र को पढ़ा लिखा कर बड़ा करने में लगा दिया और वाही पुत्र बेरोजगार हो | तो पिता क्या करे ?? सादर
क्या कहने आदरणीय सुधीर जी, इस आयोजन में अब तक प्रस्तुत लघुकथाओं में टॉप ३ में जगह बनाने में कामयाब हुई है, बधाई बधाई बधाई.
आपसी समझ की बुनियाद पड़ चुकी थी | वाह !! अति सुंदर आ. मनन कुमार सिंह
आदरणीय मनन जी, सुंदर सकारात्मक लघुकथा हेतु आपको बधाई प्रेषित है| दो तरह के भावों को दर्शा कर रही है यह लघुकथा, पहली तो शादी की आदर्श स्थिति से माता-पिता के प्रति आदर भाव और दूसरी "बाहें गले में झूल गयीं।" वाली पंक्ति| यह पंक्ति प्रेम भाव को दर्शा रही है| यह दोनों बातें बुनियादी संस्कारों से ही आती हैं| प्रेम यदि आदर से युक्त हो तो जीवन भर इसमें कमी नहीं होती|
गृहस्थी की बुनियाद अपने बड़ों की रजामंदी से रखी जाए इससे बढ़िया बात क्या होगी ऐसी ही बुनियाद आदर्श और मजबूत होती है .एक सकारात्मक सोच को जीती लघु कथा हेतु हार्दिक बधाई मनन कुमार जी .
बड़ों के आशीर्वाद के बिना रखी गई जीवन की बुनियाद बेहद कमज़ोर रह जाती है। सुन्दर लघुकथा आ. मनन कुमार जी।
आपसी समझ बूझ और एक राय होना किसी भी रिश्ते की मजबूत बुनियाद के दो अहम जुज़ हैं। लघुकथा अच्छी हुई है, बहुत खूब आ० मनन कुमार सिंह जी।
आ. मनन कुमार सिंह जी, विषय प्रदत्त लघु कथा पर हार्दिक बधाई आपको !
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