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विनय कुमार जी ,कहानी आपको पसंद आई, विषय अनोखा अलग लगा मेरा लिखना सार्थक हुआ कहानी अपना मर्म स्पष्ट कर पाई इस उत्साह वर्धन हेतु दिल से आभार |
वाह्ह माँ तो आखिर माँ ही होती है , सुंदर कथा आदरणीया जी
बहुत बहुत आभार आ० पंकज जी ,आपको लघु कथा पसंद आई.
बहुत बढ़िया कथानक है, बहुत मार्मिक, सब पहचान वालों को दुर्गन्ध आएगी ही, लेकिन माँ को कैसे? बधाई आपको इस लघुकथा के लिए|
इस एक लघुकथा में मुझे दो बढ़िया लघुकथायें दिखाई दे रही हैं, माँ की ममता को परिभाषित करती भी और दूसरों की प्रतिक्रिया को दर्शाती भी|
चंद्रेश कुमार जी ,कोई पाठक जब रचना को पर्त दर पर्त खोलकर पढता है तो रचना स्वतः धन्य हो जाती है ऐसा पाठक पाकर मैं अपने लेखन के प्रति आश्वस्त हुई तहे दिल से आभार आपका .
आ० कांता रॉय जी,आपने इस लघु कथा के मर्म को खूब पकड़ा इस कथा के जरिये जो सन्देश मैं पाठकों तक पंहुचाना चाहती थी उसका सम्प्रेषण सही ढंग से हुआ रचना पाठकों के दिल तक पंहुच रही है इससे बहुत संतुष्टि मिल रही है ...आज ज़माना ममता को भी अर्थवाद से तौल रहा है पवित्र ममता को भी कलंकित कर रहा है एक ही चश्मे से देख रही है सबको आज की जनता |
आपका दिल से आभार |
आदरणीया राजेशजी
पोस्ट मार्टम करने वाले डाक्टर हो या मोर्चरी के स्टाफ ब्वाय ये सभी निर्दय होते हैं। न सेवा भाव रखते हैं न परिजनों से सहानुभूति।
एक माँ द्वारा कहे गए शब्दों और इस कथा के लिए हार्दिक बधाई।
जी आपने सही कहा आ० अखिलेश जी ,बस यही दिखाना चाहती थी कथा में की संवेदन हीन हृदय एक माँ की ममता को कहाँ पहचानेंगे |आपका हार्दिक आभार |
पहचान....(लघुकथा)
“ सुनो!! तुम्हे अगर मेरे साथ जीवन गुजारना है तो अपने बूढ़े माँ-बाप को छोड़ना ही पड़ेगा”
“ तुम तो औरत हो. तुम्हारे अन्दर क्या भावनायें नहीं है..? इस उम्र में उन्हें किसके भरोसे छोडू..? समझो यार!! नादान न बनो..”
“ मैं बहुत अच्छे से समझ गई हूँ. मैं तो औरत हूँ, किन्तु तुम मर्द तो नहीं हो...”
(मौलिक व् अप्रकाशित)
मर्दानी परखने का अच्छा पैमाना है उस औरत का। माँ बाप को छोड़ दे तो मर्द वर्ना नहीं। स्पष्ट है कि मर्दानगी पर प्रश्न उठाने वाली खुद की औरत का दिल नहीं रखती। बढ़िया लघुकथा हुई है भाई जितेंद्र जी। शब्द-संयोजन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
//“तुम तो औरत हो. तुम्हारे अन्दर क्या भावनायें नहीं है..// - तुम तो औरत हो. क्या तुम्हारे अन्दर भावनायें नहीं है
//“मैं बहुत अच्छे से समझ गई हूँ. मैं तो औरत हूँ, किन्तु तुम मर्द तो नहीं हो...”// “मैं बहुत अच्छे से समझ रही हूँ. मैं तो औरत हूँ, किन्तु तुम ही मर्द नहीं हो...”
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