For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस बार का तरही मिसरा|
"उन्ही के कदमों में ही जा गिरा जमाना है"
वज्न: १२१२१२१२१२१२२२

काफिये के मामले में आप स्वतंत्र है बस इतना ध्यान रखें कि यह मिसरा पूरी ग़ज़ल में कहीं न कही ( मिसरा ए सानी या मिसरा ए ऊला में) ज़रूर आये|

मुशायरे कि शुरुवात शनिवार से की जाएगी| admin टीम से निवेदन है कि रोचकता को बनाये रखने के लिए फ़िलहाल कमेन्ट बॉक्स बंद कर दे जिसे शनिवार को ही खोला जाय|

विशेष : जो फ़नकार किसी कारण लाइव तरही मुशायरा में शिरकत नही कर पाए हैं
उनसे अनुरोध है कि वह अपना बहूमुल्य समय निकाल लाइव तरही मुशायरे की शोभा बढाएं|

Views: 3400

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

वाह वाह नविन साहब वाह, आगाज बहुत ही बढ़िया है, क्या शे'र निकाला है, बहुत खूब, दाद देता हूँ ,
समाज में बागी अब कम ही दीखते है चापलूसों की भीड़ है ,चलिए शायरी में ही सही सच कहने में संकोच कैसा .कई बार मर्ज़ पुराना हो तो सूई लगानी ही पड़ती है.
वाह वाह बड़े भैया कमाल के शेर कह गए...और जो मतले में गिरह बांधी है एकदम ज़माने की नब्ज़ पकड़ के बांधी है...और दरख्ते भाईचारा वाला शेर..उफ़..ये मुझे क्यों नहीं सूझा????

बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन
ग़ज़ल के नाम पे जो चुटकुले सुनाते हैं|
फकत जिन्हें कमेंट का किला बनाना है|
उन्हीं के कदमों में ही जा गिरा जमाना है|८|
hahahaahahahaha
nawi n ji aapne shuruwaat ki magar laazawaab tarike se. ek se ek shaandaar sher.
ज़मीनो आसमां को एक जिसने जाना है ,
उन्हीं के कदमो में ही जा गिरा ज़माना है .

बसर वो करते नहीं आज कल दिलो जां में ,
बने खुदा है मगर किस जगह ठिकाना है.

छोड़कर पाप पुण्य का चक्कर ,
उन्होंने ठान लिया गंगा में नहाना है .

सियासी लोग भला डरते कब जमाने से ,
कालिखों के लिए हर रोज एक बहाना है .

कई बरस के बाद आया चुनावी मौसम ,
नए नेताओं के लिए यही नजराना है.

उजड गए सीवान डेरे और दुआरे सब ,
बदल गए से गाँव में भला क्या जाना है.

बहुत उलझ गए हैं उन के ये लच्छे सब,
ये रिश्ते हैं या फकत उनका ताना बाना है.

कताएं नज़्म ग़ज़ल या कि मसनवी "अभिनव "
लिखेंगे कुछ भी मगर आपको सुनाना है.
सियासी लोग भला डरते कब जमाने से ,
कालिखों के लिए हर रोज एक बहाना है .
क्या बात कही है जनाब अभिनव साहिब, बहुत खूब, दाद देता हूँ मैं आप के ख्यालात को,
काफी कुछ सोच कर आया था .वह 'था' हो गया .अब तो इस शौक़ के लिए इधर उधर जानकार , कद्रदान तलाशने पड़ते हैं.मुझे लगता है ये मेरा नहीं सारे साहित्यकारों का दर्द है. आईये इस मंच पर बांटे .यहाँ आकर अच्छा लग रहा है.अप सब का साथ चाहिए. शुक्रिया!!
सबसे पहले तो अभिनव भाई साहब आपका तरही में स्वागत है...
बड़े उम्दा शेर कह गए है आप...मतले में लगाई गिरह बड़ा नेक संदेशा देती है ..और खुदा के ठिकाने वाला शेर ..बदलते रिश्तों पर करारा तंज़ करता है| और मकते में कही गई बात का मै पूरे OBO परिवार की तरफ से स्वागत करता हूँ|

बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन
बहुत अच्छा लग रहा है.आभार!!मैं तो ..

"रोज जीता हूँ रोज मरता हूँ ,
दर्द की मूरतों को गढता हूँ.
अपने से पहले आपको ही ओ .बी .ओ. पर पढ़ा था आपने भी क्या खूब शेर कहे हैं वाह !
"ग़ज़ल के नाम पे जो चुटकुले सुनाते हैं ...बहुत बढ़िया और खालिस यथार्थ .
वाह आज़र साहब वाह, अच्छी ग़ज़ल निकाली है, मुशायरा मे अब मजा आ रहा है, बहुत खूब ,
गुरु जी अपने भी अपनी ग़ज़ल के साथ मुशायरे में शिरकत की मै तहे दिल से आपका शुक्रगुजार हूँ

आपकी ग़ज़ल पर कमेन्ट करना तो मेरे बस की बात ही नहीं है|
बस स्नेह बनाये रखियेगा|

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
43 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
2 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
11 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
Thursday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service