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आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

 

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ उन्चालीसवाँ आयोजन है.   

 

इस बार का छंद है - सरसी छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

19 नवम्बर 2022 दिन शनिवार से 

20 नवम्बर 2022 दिन रविवार तक

हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

चित्र अंर्तजाल के माध्यम से 

सरसी छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

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आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 19 नवम्बर 2022 दिन शनिवार से 20 नवम्बर 2022 दिन रविवार तक, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
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Replies to This Discussion

आदरणीय दिनेश विश्वकर्मा जी, 

आपकी प्रस्तुति का कहन, गठन और विन्यास वस्तुत:श्लाघनीय है. 

आदरणीया प्राची जी ने आपके प्रत्येक छंद पर प्रतिक्रिया देकर इनके भाव और गठन को अनुमोदित कर दिया है. यह आपके प्रयास को मिला मान है. 

हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ.

शुभातिशुभ

आदरणीय सौरभ जी । आपको सादर प्रणाम । आपकी प्रतिक्रिया ने निश्चित मुझे

प्रेरित किया है । मेरा श्रम आप सभी से आशीर्वाद से निखरता रहे, ऐसी अभिलाषा है। हृदयतल से आभार आपका। 

आ. भाई दिनेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्रानुरूप अति उत्तम छन्द हुए हैं। बहुत बहुत हार्दिक बधाई। 

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए। आपकी प्रतिक्रिया हेतु आपका हृदयतल से आभार ।

आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी सादर, प्रदत्त चित्र पर सभी सरसी छन्द आपके सटीक और उत्तम प्रवाह लिए हैं. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी सादर अभिवादन। छंद पर आपकी टिप्पणी  हेतु हृदयतल से आभार आपका

बहुत सुन्दर छंद सृजन, चित्र के मर्म पर विचार करते हुए बधाई आदरणीय 

सादर नमन आदरणीया। अपनी प्रतिक्रिया देने हेतु बहुत बहुत आभार आपका

आदरणीय दिनेश भाईजी

सरसी छंद पर इतनी सुंदर इतनी लम्बी और चित्र अनुरूप प्रभावशाली त्रुटिहीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी सादर अभिवादन । आपने रचना पढ़ी अपने अनमोल शब्द से मुझे प्रेरित किया।हार्दिक आभार आपका।

सरसी छंद 

+++++++++

 

हवा प्रदूषित महानगर की, कैसे रहें निरोग।

थम थमकर सांसें चलती हैं, मरमर जीते लोग॥

भर जाता आकाश धुएँ से, लगे सुबह भी शाम।

दिन में भी जब जलें बत्तियाँ, तब होता हर काम॥

 

मिल मालिक नेता अधिकारी, सब जी के जंजाल।

इनकी सारी करतूतों से, बुरा शहर का हाल॥                        

जंगल काटे नगर बसाये, कर ली पूरी आस।

मिलें उगलती धुँआ विषैली, हर दिन बारों मास॥

 

वायु प्रदूषण दूषित जल से, होते सारे रोग।

असर न होता दवा दुआ का, काम न आता योग।

महानगर के वासी पाते, शासन से सौगात।

धूल धुँआ दुर्गंध में जिओ, देकर उसको मात॥   

  

......................... 

मौलिक अप्रकाशित

 

अब तो महानगरों जैसे प्रदूषण के हालात मध्यम और छोटे शहरों  में भी होने लगे हैं, वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण से कोई भी स्थान अछूता नहीं ... कारण और हालात को समाहित करती बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी 

बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये 

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