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मन-भावक इतिहास - डॉo विजय शंकर

अच्छा लगता है
पुरखों को याद करना ,
उनकीं कथाएं , उनकीं उब्लब्धियाँ ,
सुनना और बयान करना ॥
एक गौरवपूर्ण अतीत और
उसकी सुनहरी स्मृतियाँ ॥
और , सुन्दर सपने देखना ,
फिर कोई भगीरथ आएगा
गंगा क्या , इस बार स्वर्ग ही
धरती पर उतार लाएगा ॥
अभी से दलाल या ठेकेदार
ढूँढ लो , उसके संपर्क में रहो,
स्वर्ग का टिकट वही न दिलाएगा ॥


मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on November 27, 2014 at 10:30pm
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी इस रचना को स्वीकार कर आपने जो मान दिया है उससे इसका महत्व बढ़ रहा है , और यह संदेश भी लोगों तक सही तरीके से पहुँच रहा है कि गौरवशाली अतीत सिर्फ गर्व करने के लिए नहीं होता है , उसे ज़िंदा रखने के लिए निरंतर उद्योग भी करने पड़ते हैं। और स्वर्ग कभी भी टिकट से नहीं मिला करता है। आशा है आपके समर्थन से संदेश दूर तक जाएगा। बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 27, 2014 at 9:25pm

बहुत जबरदस्त कटाक्ष ...सुन्दर रचना ..बधाई आपको 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 27, 2014 at 9:06pm

क्या खींच कर तमाचा जड़ा है, तंज करती हुई सामयिक रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय डॉ साहब।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on November 27, 2014 at 7:06pm

सुन्दर कटाक्ष! अच्छी रचना, बधाई !

Comment by Hari Prakash Dubey on November 27, 2014 at 5:41pm

स्वर्ग का टिकट वही न दिलाएगा...सही कहा सर आपने ...शानदार रचना हार्दिक बधाई 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 27, 2014 at 12:48pm

अतीत की शान को वर्तमान में अपने कन्धों पर ढोने वालों के मुँह पर बहुत करारी चपत लगा रही है ये रचना। हार्दिक बधाई इस विचारोत्तेजक प्रस्तुति हेतु डॉ विजय शंकर जी।     

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