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चले आओ .....

जाने कौन
बात कर गया
चुपके से
दे के दस्तक
नैनों के
वातायन पर

दौड़ पड़ा

पागल मन
मिटाने अपने
तृषित नैनों की
दरस अभिलाषा

पवन के ठहाके
मेरे पागलपन का
द्योतक बन
वातायन के पटों को
बजाने लगे

अंतस का एकांत
अभिसार की अनल को

निरंतर

प्रज्वलित करने लगा

कौन था
जिसका छौना सा खयाल
स्पर्शों की आंधी बन
मेरी बेचैनियों को
झिंझोड़ गया

कौन था
जिसकी दस्तक ने
मेरे अंतस को
दूधिया सपनों से रंग दिया

बुझ न जाएँ कहीं 

प्रतीक्षा की देहरी के
जलते दिए

चले आओ
ओ ! मेरी स्मृति अश्व के सारथी
चले आओ
प्रतीक्षा के अभिशप्त पलों का
निराकरण कर जाओ
प्रतीक्षित स्वप्न को
साकार कर जाओ
चले आओ,चले आओ, चले आओ .....

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on August 26, 2019 at 3:22pm

आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब , सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार . 

Comment by Samar kabeer on August 25, 2019 at 2:19pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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