"अरे महमूद भाई, कहाँ हो. आज सोसाइटी की मीटिंग में नहीं जाना क्या", रजनीश ने घर में कदम रखते हुए आवाज लगायी.
"आ रहे हैं भाई साहब, आजकल पता नहीं क्या हो गया है, ऑफिस से आने के बाद खामोश से रहते हैं", भाभीजान ने पानी का ग्लास रखते हुए कहा.
"कुछ परेशानी होगी ऑफिस की, मैं पूछता हूँ उससे. वैसे भी आजकल काम बहुत बढ़ गया है और तनाव भी", रजनीश ने सोफे पर बैठते हुए कहा और पानी का ग्लास उठा लिया.
"चाचू, मेरी चॉकलेट कहाँ है", कहते हुए छोटी आयी और रजनीश की गोद में चढ़ने लगी. रजनीश ने जेब से चॉकलेट निकाली और छोटी को पकड़ा कर उसे गोद से तुरंत उतार दिया.
"और मेरी किस्सी", छोटी मचली.
अमूमन ऐसे में छोटी को कस कर गोद में भर लेने वाला और उसे कई किस्सी देने वाला रजनीश आज रुक गया. छोटी चॉकलेट लेकर चली गयी, उसने ध्यान नहीं दिया लेकिन भाभीजान की नज़रों ने यह ताड़ लिया. वह कुछ कहना चाह रही थीं लेकिन रजनीश ने उनके आगे हाथ जोड़ लिए.
"आज से अपने अलावा किसी को भी छोटी को हाथ मत लगाने दीजियेगा, मुझे भी. इस माहौल में अब तो अपने आप से भी भरोसा उठ गया है भाभीजान", रजनीश की आवाज कांप रही थी.
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
इस उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ नीलम उपाध्याय जी
आदरणीया बृजेश नीरज जी, बढ़िया समसामयिक रचना की प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें ।
इस उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी
इस उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब
जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय जी। बहुत सुंदर संदेश देती मनोवैज्ञानिक रचना।
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