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शृंगार रास के दोहे : ... पागल मन की मर्ज़ियाँ

पागल मन की मर्ज़ियाँ, नैनों के उत्पात। 
स्पर्श करें गुस्ताखियाँ, सपना लगती रात।१ ।

ये आँखों की सुर्खियाँ, बिखरे-बिखरे बाल। 
अधरों की शैतानियाँ ,करें उजागर गाल।२ ।

यौवन रुत में जब करें , नैन हृदय पर वार। 
घूंघट पट में लाज के, शरमाता शृंगार।३ ।

नैन करें जब नैन से, अंतर्मन की बात। 
दो पल में सदियाँ मिटें ,रात लगे सौग़ात।४ ।

बंजारे सा मन हुआ, बंजारी सी प्यास। 
विरह ताप में प्रीत की, व्यथित हुई हर आस।५ ।

बड़ा अजब है सृष्टि का, आसमान में खेल। 
भानु संग होता नहीं, कभी चाँद का मेल।६ ।

कैसे कह दूँ मैं भला, सखी रात की बात। 
अधरों पर होती रही, रह-रह कर बरसात।७ ।

यौवन की दहलीज पर , वो पहली मनुहार। 
हर बंधन की हो गई, शरमीली सी हार। ८ ।

गूंगे स्वर गुंजित हुए, तृषा हुई साकार। 
मुदित नैन करते रहे ,श्वास श्वास अभिसार।९ ।

राग मिलन के कर गए , प्रेम सुवासित भोर। 
अंतस में गुंजित हुआ , विगत रैन का शोर।१० ।

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on April 9, 2019 at 6:04pm

आदरणीय  बृजेश कुमार 'ब्रज' जी सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on April 9, 2019 at 6:04pm

आदरणीय  Samar kabeer  जी सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on April 9, 2019 at 6:03pm

आदरणीय TEJ VEER SINGH  जी सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 9, 2019 at 9:17am

वाह आदरणीय अनुपम सरस दोहे..बधाई

Comment by Samar kabeer on April 8, 2019 at 11:54am

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छे दोहे रचे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 6, 2019 at 7:04pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी।बेहतरीन दोहे।

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