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1-
जिसको ईश्वर की नहीं, कोई भी परवाह।
वह चल पड़ता है यहाँ, पाप कर्म की राह।।
पाप कर्म की राह, मगर फिर ठोकर खाता।
करके सत्यानाश, सही पथ पर वह आता।।
लोकलाज या शर्म,आज आखिर है किसको।
करता वही कुकर्म,न ईश्वर का भय जिसको।।
2-
हो जाता जो आदमी, लालच में पथभ्रष्ट।
वही भोगता बाद में, जीवन में अति कष्ट।।
जीवन में अति कष्ट, मगर हो जाता अंधा।
झूठ कपट छल छिद्र,पाप का करता धंधा।।
सीधा सच्चा मार्ग, नहीं उसको फिर भाता।
लालच में पथभ्रष्ट, आदमी जो हो जाता।।

**हरिओम श्रीवास्तव**

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on February 6, 2019 at 9:28pm

सीख देती हुई सुन्दर और सुघड़ कुण्डलियाँ आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी 

Comment by Samar kabeer on February 4, 2019 at 4:21pm

जनाब हरिओम श्रीवास्तव जी आदाब,अच्छे कयडलिया छन्द लिखे आपने,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Dayaram Methani on February 2, 2019 at 1:45pm

आदरणीय हरिआेम श्रीवास्तव जी, सुंदर सीख देते बहुत ही सुंदर कुण्डलिया छंद ।

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