ग़ज़ल (प्यार का हर दस्तूर निभाना पड़ता है)
(फ्अल_फ ऊलन _फ्अल _फ ऊलन _फ़ेलुन _फा)
प्यार का हर दस्तूर निभाना पड़ता है l
यार का हर ग़म हँस के उठाना पड़ता है l
बाज़ कहाँ वो यूँ आता है महफ़िल में
शीशा नुक्ता चीं को दिखाना पड़ता है l
यूँ ही मुसाफ़िर मिटती नहीं है तारीकी
रस्ते में इक दीप जलाना पड़ता है l
उलफत की मंज़िल आसान नहीं इतनी
धोका हर इक मोड़ पे खाना पड़ता है l
रह पाता है कोई सदा कब दुनिया में
एक न इक दिन सब को जाना पड़ता है l
मज़दूरी मज़दूर को कब यूँ है मिलती
खून पसीना उसको बहाना पड़ता है l
खेल मुहब्बत का तस्दीक है कुछ ऎसा
जिस में दिल दाँव पे लगाना पड़ता है l
(मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय तस्दीक साहब, बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल।
हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
सादर।
जनाब फूल साहिब , ग़ज़ल पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
बहुत सुंदर रचना ,बधाई स्वीकारे
मुहतरम जनाब तेज वीर साहिब , ग़ज़ल पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
मुहतरम जनाब समर साहिब आ दाब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I आपने सही फरमाया इस में की जगह जिस में हो गया l
जनाब भाई लक्ष्मण धामी साहिब , ग़ज़ल पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'जिस में दिल दाँव पे लगाना पड़ता है'
ये मिसरा शायद टंकण त्रुटि का शिकार है?
हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।बेहतरीन गज़ल ।
रह पाता है कोई सदा कब दुनिया में
एक न इक दिन सब को जाना पड़ता है l
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