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हर दुआ पर आपके आमीन कह देने के बाद
चींटियाँ उड़ने लगीं, शाहीन कह देने के बाद
आपने तो ख़ून का भी दाम दुगना कर दिया
यूँ लहू का ज़ायका नमकीन कह देने के बाद
फिर अदालत ने भी ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली
मसअले को वाक़ई संगीन कह देने के बाद
ये करिश्मा भी कहाँ कम था सियासतदान का
बिछ गईं दस्तार सब कालीन कह देने के बाद
फूल, तितली, चाँद-तारे, रंग से महरूम हैं
आपकी रानाई को रंगीन कह देने के बाद
ख़ूब उगला ज़ह्र यारों ने तअल्लुक़ तोड़ कर
साँप का बिल है मेरी अस्तीन कह देने के बाद
~ बलराम धाकड़
मौलिक/अप्रकाशित।
Comment
आदरणीय समर सर, सादर अभिवादन एवं धन्यवाद। आप जिस तवज्जो और जितना वक़्त देकर ग़ज़लों की तक़तीअ और मीमांसा करते हैं वह हम जैसे शागिर्दों के लिए किसी प्रकाश स्तम्भ से कम नहीं है। आपके कहे मुताबिक सुधार कर लिया जाएगा। पुनः बहुत आभार।
सादर।
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चींटियाँ उड़ने लगीं, शाहीन कह देने के बाद ।
सर, इस मतले में कहने का प्रयास यह किया गया है कि, आपकी हर बात, हर एक प्रार्थना पर राज़ी हो जाने, उसमें शामिल हो जाने और उसपर आमीन कह देने की प्रवृत्ति है और इसी प्रवृत्ति के चलते चींटियों के जैसे क्षुद्र जीव भी बाज़ की तरह उड़ने लगे हैं। यह मतला, दरअसल शरणागतवत्सल के नाम पर अपने हरेक पात्र या अपात्र प्यादे के सर्वविध संरक्षण के प्रति व्यंग्यस्वरूप लिखा गया है
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आपके तर्क ठीक हैं,मतला गवारा किया जा सकता है ।
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यक़ीनन खून का ज़ायका नमकीन होता है लेकिन बहुतों ने इसे शायद ही कभी चख कर देखा हो। प्राकृतिक संसाधनों जिनपर प्रत्येक मनुष्य का जन्मजात अधिकार है उन्हें तवज़्ज़ो देकर और उनका प्रचार प्रसार करके उनका दाम भी बढ़ाया जा सकता है जो आमजन के हित में नहीं कहा जा सकता।//
चलिये ठीक है ।
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ये करिश्मा भी कहाँ कम था सियासतदान का,
बिछ गईं दस्तार भी कालीन कह देने के बाद।
ऐसा कर लें तो क्या उचित रहेगा?//
सानी मिसरे में 'भी' की जगह "सब" कर लें ।
'आस्तीन' का कोई विकल्प नहीं,कुछ और सोचें ।
आदरणीय समर सर, ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफ़जाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
हर दुआ पर आपके आमीन कह देने के बाद
चींटियाँ उड़ने लगीं, शाहीन कह देने के बाद ।
सर, इस मतले में कहने का प्रयास यह किया गया है कि, आपकी हर बात, हर एक प्रार्थना पर राज़ी हो जाने, उसमें शामिल हो जाने और उसपर आमीन कह देने की प्रवृत्ति है और इसी प्रवृत्ति के चलते चींटियों के जैसे क्षुद्र जीव भी बाज़ की तरह उड़ने लगे हैं। यह मतला, दरअसल शरणागतवत्सल के नाम पर अपने हरेक पात्र या अपात्र प्यादे के सर्वविध संरक्षण के प्रति व्यंग्यस्वरूप लिखा गया है लेकिन शायद अपने कथ्य की प्रभावी अभिव्यक्ति में असफल रहा। जिसका मुझे अफ़सोस है।
आपने तो ख़ून का भी दाम दुगना कर दिया
यूँ लहू का ज़ायका नमकीन कह देने के बाद
यक़ीनन खून का ज़ायका नमकीन होता है लेकिन बहुतों ने इसे शायद ही कभी चख कर देखा हो। प्राकृतिक संसाधनों जिनपर प्रत्येक मनुष्य का जन्मजात अधिकार है उन्हें तवज़्ज़ो देकर और उनका प्रचार प्रसार करके उनका दाम भी बढ़ाया जा सकता है जो आमजन के हित में नहीं कहा जा सकता।
मोजज़ा ये भी कहाँ कम था सियासतदान का
बिछ गए दस्तार भी कालीन कह देने के बाद
इस शेर को,
ये करिश्मा भी कहाँ कम था सियासतदान का,
बिछ गईं दस्तार भी कालीन कह देने के बाद।
ऐसा कर लें तो क्या उचित रहेगा?
बाकी शेर अपने ठीक कर दिए हैं। परंतु अस्तीन का कोई अन्य विकल्प समझ नहीं आया। कृपया इस विषय में भी मार्गदर्शन देने का कष्ट करें।
मुआमला शब्द क्या बह्र के मुताबिक़ ठीक होगा, या इसके स्थान पर अन्य विकल्प तलाशना होगा।
आपकी समझाइश और सुझाव हमेशा ही बेशकीमती और इसीलिये शिरोधार्य होते हैं। ग़ज़ल को और समय देकर इस्लाह के मुताबिक सुधार करने का प्रयास करूँगा, सर।
सादर।
आ० नीलेश जी, हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया। यक़ीनन अस्तीन शब्द उचित नहीं प्रतीत होता किन्तु अन्य कोई शब्द के अभाव में फ़िलहाल इस्तेमाल कर लिया गया है। आपके विचार से कोई अन्य काफ़िया इस्तेमाल किया जा सके तो कृपया उचित मार्गदर्शन का कष्ट करें।
सादर।
जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,लेकिन ग़ज़ल अभी कुछ समय और चाहती है ।
हर दुआ पर आपके आमीन कह देने के बाद
चींटियाँ उड़ने लगीं', शाहीन कह देने के बाद--मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,सानी मिसरे में क्या कहना चाहते हैं,'शाहीन'का अर्थ है, सफेद रंग का शिकारी परिन्दा, आला क़िस्म का बुलन्द परवाज़ बाज़,और ' चींटियाँ उड़ने लगीं' से यहाँ क्या तातपर्य है आपका,कृपया बताने का कष्ट करें ।
आपने तो ख़ून का भी दाम दुगना कर दिया
यूँ लहू का ज़ायका नमकीन कह देने के बाद--ख़ून का ज़ायक़ा तो नमकीन ही होता है,फिर 'नमकीन' कह देने से दाम के दुगना होने की क्या तुक है, मेरे नज़दीक शैर का भाव स्पष्ट नहीं ।
फिर अदालत ने भी ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली
मामले को वाक़ई संगीन कह देने के बाद--इस शैर के सानी मिसरे में 'मामला' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है,"मुआमला" देखियेगा ।
मोजज़ ये भी कहाँ कम था सियासतदान का
बिछ गए दस्तार भी कालीन कह देने के बाद--इस शैर के ऊला मिसरे में ' मोजज़' शब्द को शायद आप "मौजिज़ा" लिखना चाहते थे,लेकिन ये शब्द यहाँ मुनासिब नहीं इसकी जगह 'करिश्मा' शब्द ठीक होता:-
'ये करिश्मा भी कहाँ कम था सियासतदान का'
और इस शैर के सानी मिसरे में "दस्तार" शब्द स्त्रीलिंग है, देखियेगा ।
फूल, तितली, चाँद-तारे, रंग से महरूम हैं
आपकी रानाई को रंगीन कह देने के बाद--ये शैर ठीक है ।
ख़ूब यारों ने ज़हर उगला, तअल्लुक़ तोड़ कर
साँप का बिल है मेरी अस्तीन कह देने के बाद--इस शैर के ऊला में सहीह शब्द है "ज़्ह्र" जिसका वज़्न 21 है, इस लिहाज़ से मिसरा यूँ होना चाहिए:-
'ख़ूब उगला ज़ह्र यारो ने तअल्लुक़ तोड़ कर'
इस शैर के सानी मिसरे में 'अस्तीन' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "आस्तीन" देखियेगा ।
बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें,बाक़ी शुभ शुभ ।
आ. बलराम जी..
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है.. ढेरों बधाईयाँ ..
लेकिन देखिएगा कि आस्तीन को अस्तीन पढ़ना दुरुस्त है क्या?
सादर
हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय लक्ष्मण जी।
धन्यवाद आदरणीय तेजवीर सिंह जी।
आ. भाई बलराम जी, बेहतरीन गजल हुयी है । हार्दिक बधाई स्वीकरें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय बलराम धाकड़ जी। बेहतरीन गज़ल।
फिर अदालत ने भी ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली
मामले को वाक़ई संगीन कह देने के बाद
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