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कवि (अतुकान्त कविता)

संवेदनाओं की पथरीली चोटी पर बैठकर
अपने रिसते हुए घावों को देखता हुआ
ये कौन है
जो कभी कुत्ते की तरह
जीभ से उन्हें चाटता है
तो कभी मुट्ठी में नमक भर कर
उनमें उड़ेल देता है
और फिर एक तपस्वी की तरह
ध्यान लगाकर सुनता है
अपनी आहों और कराहों को?
पत्थरों को उठा कर
अपने लहू में डुबा कर
भावनाओं की लहरों पर बैठे हुए
कौन लिख रहा है उनसे
अपना मृत्यु लेख?
किसी फन्दे पर लटक कर
एक पल में शान्ति से गुज़र जाने की अपेक्षा
क्यों चुन ली है इसने
एक रेंगती हुई सी लम्बी मौत?
स्मृतियों की तप्त भूमि को
अपने आँसुओं से सींचता हुआ ये शख़्स
कौन है
जो अपने हाथों की लकीरों को
जलाने के बाद
सरहदों को नक़्शे से
मिटाने पर आमादा है?
सूरज की क़ब्र को
मज़दूर के फावड़े से खोद कर
उसे चाँद पर दफ़नाने की
तमन्ना रखने वाला ये शख़्स
पागलखाने की निराश दीवारों के बीच
रातदिन क्रान्ति के सपने
क्यूँ देखते रहता है?
ज़रा पता तो करो
कहीं ये कोई कवि तो नहीं?

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 30, 2018 at 1:56pm

अद्भुत विश्लेषण किया है आदरणीय कवि का..बेहतरीन कविता

Comment by Samar kabeer on June 29, 2018 at 8:11pm

जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,अच्छी अतुकान्त कविता है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 28, 2018 at 3:19pm

बेहतरीन विचारोत्तेजक सृजन। हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार  साहिब।

Comment by रक्षिता सिंह on June 27, 2018 at 1:07pm

आदरणीय महेन्द्र जी नमस्कार 

बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ ....हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।।

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