For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

‘‘बिटिया की उम्र निकली जा रही है, तुम उसकी कहीं शादी क्यों नहीं करते?’’ हर कोई उससे यही सवाल करता। कल तो सुपरवाइजर ने भी टोक दिया, ‘‘कलेक्टर ढूँढ रहे हो क्या?’’

मिल में काम करने वाले उस मजदूर का सपना कोई कलेक्टर नहीं बस एक अच्छा सा लड़का था जिसे वह अपनी बेटी के लिए ढूँढ रहा था। बीमारी से बीवी के गुज़र जाने के बाद बस एक बेटी ही थी जो उसका सबकुछ थी। बीते सालों में उसने रात-दिन एक कर के कई रिश्ते देखे मगर बात कहीं बनी नहीं। आज भी वह एक ऐसी ही जगह से निराश हो कर लौटा था। ‘‘बेटी!’’ उसने दरवाजा खटखटाते हुए आवाज़ दी।

‘‘अच्छा लड़का चाहिए तो अच्छा रुपया भी ख़र्च करना होगा। मेरा बेटा बड़े दफ़्तर में चपरासी है। अच्छा-ख़ासा ऊपरी पैसा कमाता है। अगर इतना कैश नहीं दे सकते हैं तो मेरे बेटे का ख़्याल अपने दिमाग से निकाल दीजिए।’’ आज उस लड़के के पिता द्वारा कहे गये ये शब्द वह पहले भी कईयों से सुन चुका था, बस फ़र्क था तो सिर्फ़ कीमत का। ‘‘बेटी दरवाजा खोलो।’’ उसने दोबारा दरवाज़ा खटखटाया।

‘‘देखो, अब की जो भी लड़का मिले उसी से उसके हाथ पीले कर दो।’’ उसकी बीवी उससे कहा करती थी। ‘‘जो भी लड़का? बाप हूँ उसका, दुश्मन नहीं। मेरी बेटी राजकुमारी है, उसकी शादी तो मैं किसी राजकुमार से ही करूँगा।’’ और वह गर्वित हो कर जवाब देता था। ‘‘राजकुमारों का रिश्ता राजाओं के घर में होता है, भिखारियों के नहीं। इसलिए ज़्यादा इतराओ मत।’’

दरवाज़ा अभी भी नहीं खुला था। ‘‘बेटी! बेटी!!’’ उसका मन आशंका से भर उठा। वह ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा पीटने लगा। भीतर कोई हलचल नहीं हो रही थी। किसी तरह दरवाज़ा तोड़ कर वह जैसे ही अन्दर पहुँचा तो उसकी बेटी की लाश उसे फन्दे से झूलते हुए मिली। उसका सपना टूट चुका था।

‘‘अपना चेहरा देखिए पापा, झुर्रियाँ पड़ती जा रही हैं। मेरी फ़िक्र छोड़ कर थोड़ा अपना भी ख़्याल रखिए नहीं तो मेरी शादी के दिन समधन आपको बुड्ढा कहेंगी।’’ बेटी ने उसकी फ़िक्र ख़त्म कर दी थी। उसकी लाश को अपनी गोद में रखकर वो रो रहा था। बाहर शहनाईयाँ गूँज रही थीं। किसी कलेक्टर की शादी थी आज। शहनाईयों की गूँज बढ़ती जा रही थी और उसके रोने की भी।

धीरे-धीरे आवाज़ इतनी बढ़ गयी कि उसकी बर्दाश्त से बाहर हो गया। वो बाहर की तरफ़ भागा। भागकर वो सीधे उस गेस्ट हाउस में गया जहाँ से शहनाईयों की आवाज़ आ रही थी। शहनाईयों को छीन कर तोड़ दिया उसने। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता उसने मेज पर बिछी हुई चादर को खींच कर खाने को ज़मीन पर गिरा दिया। ‘‘अरे कोई पकड़ो इस पागल को!’’ वो सबकुछ तहस-नहस कर देना चाहता था।

लोगों ने उसे पकड़ा और पकड़ते ही उसकी धुनाई शुरु कर दी। उन्होंने उसे इतना मारा, इतना मारा, इतना मारा कि वो मर गया। फिर उसे उठाया और उठाकर वहाँ से दूर अँधेरे में फेंक दिया जहाँ उसकी फटी हुई जेब के सिवाय कुछ भी दिखायी नहीं दे रहा था।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 720

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on June 13, 2018 at 8:35pm

पाठक अपनी पसन्द-नापसंद और राय को ज़ाहिर करने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र हैं आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. यदि हमारी रचनाओं में विभिन्न प्रकार के पाठक आ कर अपने भिन्न-भिन्न विचार व्यक्त करें तो इससे बढ़कर हमारे लिए ख़ुशी की बात और क्या हो सकती है. आपकी टिप्पणी भले देर से आयी पर अच्छा लगा क्योंकि आपकी प्रतिक्रिया का मुझे हमेशा ही इंतज़ार रहता है. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. हार्दिक आभार. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on June 13, 2018 at 8:28pm

अपने मूल्यवान विचारों से अवगत करने हेतु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय विजय निकोर जी. हार्दिक आभार. सादर.

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 12, 2018 at 12:45pm

बढ़िया परिकल्पना के साथ बढ़िया प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार जी। टिप्पणियों के अनुसार ऐसा लगता है कि परिकल्पना लेखक पर कहीं कहीं हावी हो जाती है, जो कुछ एक पाठकों को नापसंद है। सादर।

Comment by vijay nikore on June 12, 2018 at 10:04am

लघु कथा में सारे प्रसंग ठीक बैठे हैं, पलाट भी अच्छा है, परन्तु अंत में कुछ अतिशयोक्ति हो गई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Mahendra Kumar on June 11, 2018 at 6:41pm

आदरणीय तेज वीर सिंह जी, प्रत्युत्तर हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद. आपने जिस बिंदु की चर्चा की है, उसे मैंने नोट कर लिया है. मैं देखता हूँ कि उसे कैसे बेहतर कर सकता हूँ. ईमानदार प्रतिक्रियाओं का हमेशा ही स्वागत है. इसलिए अप्रिय लगने जैसी कोई बात नहीं. बल्कि यह तो ख़ुशी की बात है आपने अपनी राय निष्पक्ष रूप से रखी. आपने जो भी कहा, लघुकथा की बेहतरी के लिए ही कहा. आपसे ऐसी ही प्रतिक्रियाओं की आगे भी उम्मीद है. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर आभार.

Comment by TEJ VEER SINGH on June 11, 2018 at 1:16pm

आदरणीय महेंद्र जी, आपने जो अंतिम पैरा में विवरण दिया है, जिसमें वह व्यक्ति शहनाई की आवाज़ सुनकर बेटी की लाश को छोड़ कर दौड़ जाता है और वहाँ जाकर तोड़ फ़ोड़ करता है।यह एकदम अविश्वसनीय एवम नाटकीय लगता है।ऐसे हालात में, जहाँ किसी बच्ची ने आत्म हत्या की कोशिश की हो, पहले उसे अस्पताल ले जाने का प्रयास किया जाता है।कोई भी परिवार का सदस्य, यह फ़ैसला खुद नहीं कर लेता कि यह मर चुकी है, भले ही वह मर गयी हो।भावनात्मक स्तर पर लघुकथा मार्मिक है मगर हक़ीक़त के धरातल पर सटीक नहीं लगती। मेरी रॉय आपको अप्रिय लगी हो तो क्षमा प्रार्थी। सादर।

Comment by Mahendra Kumar on June 10, 2018 at 11:08am

आदरणीय बृजेश जी, मंच पर आने के बाद रचना पाठक की हो जाती है. इसलिए आप उसकी समीक्षा करने और अपनी पसन्द-नापसन्द बताने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र हैं. एक रचनाकार के लिए इससे बढ़कर कोई ख़ुशी नहीं हो सकती कि कोई उसकी रचना पर ईमानदारी से अपनी प्रतिक्रिया दे. रचना के सम्बन्ध में आपके विचार जानकार मुझे बेहद ख़ुशी हुई. इसी तरह से आगे भी अपने मूल्यवान विचारों से अवगत करते रहें. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. हार्दिक आभार. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on June 10, 2018 at 11:04am

हार्दिक आभार आदरणीया बबिता जी. कथा पर आपकी अमूल्य टिप्पणी का बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on June 10, 2018 at 11:02am

हौसला अफ़जाई का बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया नीलम जी. हृदय से आभारी हूँ. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on June 10, 2018 at 11:00am

हार्दिक आभार आदरणीय तेज वीर सिंह जी. यदि आप यह भी इंगित कर देते कि कथा कहाँ पर अतिवाद और नाटकीयता का शिकार हो गयी है तो मुझे समझने और सुधारने में आसानी होती. बहरहाल आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
6 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service