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दे सोच कर सज़ाएं गुनहगार हम नहीं
ये तू भी जानता है ख़तावार हम नहीं
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जिस पर किया भरोसा वही दे गया दगा
लेकिन किसी भी शख़्स से बे-ज़ार हम नहीं
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दिल तो दिया था जान भी तुझपे निसार की
फिर क्यूँ तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नहीं
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जिनकी खुशी के वास्ते सब कुछ लुटा दिया
उफ़ वो ही कह रहे हैं वफादार हम नहीं
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हैरत है दिल के पास थे जिनके सदा 'रज़ा'
अब तो उन्ही के प्यार के हक़दार हम नहीं
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
जिनकी खुशी के वास्ते सब कुछ लुटा दिया
उफ़ वो ही कह रहे हैं वफादार हम नहीं। वाह! वाह!! बहुत ही उम्दा शे'र ।
दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें आदरणीय सलीम रज़ा साहब ।
जनाब सलीम रज़ा साहिब ,बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
आ. भाई सलीम जी, सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।
हार्दिक बधाई आदरणीय सलीम रज़ा साहब जी। बेहतरीन गज़ल।
जिनकी खुशी के वास्ते सब कुछ लुटा दिया.
वो आज कह रहे हैं वफ़ादार हम नहीं
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