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पत्थर से चोट खाए निशानों को देखिए ।
बहती हुई ख़िलाफ़ हवाओं को देखिए ।।
आबाद हैं वो आज हवाला के माल पर ।
कश्मीर के गुलाम निज़ामों को देखिए ।।
टूटेगा ख्वाब आपका गज़वा ए हिन्द का ।
वक्ते क़ज़ा पे आप गुनाहों को देखिये ।।
गर देखने का शौक है अपने वतन को आज ।
शरहद पे ज़ह्र बोते इमामों को देखिए ।।
कुछ फायदे के वास्ते दहशत पनप रही ।
सत्ता में बैठे आप दलालों को देखिए ।।
मन्दिर न बन सके न वो मस्जिद ही बन सके ।
दूकान बन्द मत हो खजानों को देखिए ।।
मजहब नहीं बुरा है सियासत बुरी यहां ।
अमनो सुकूँ के खास इरादों को देखिए ।।
दर दर की खाक छान रहे नौजवान सब ।
हैं पेट के सवाल , सवालों को देखिए ।।
भरपूर टैक्स आप लगाते रहें मगर ।
थाली में क्या बचा है निवालों को देखिए ।।
मां भारती का ताज है मुस्लिम सपूत भी ।
चश्मा उतार कर के वफाओं को देखिए ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
लाजवाब....
खूब ग़ज़ल हुई आदरणीय त्रिपाठी जी..
कुछ फायदे के वास्ते दहशत पनप रही ।
सत्ता में बैठे आप दलालों को देखिए ।। वाह! वाह!! बहुत ख़ूब ! बहुत ख़ूब !! बहुत ही उम्दा शे'र । सत्ता में बैठे कुछ हरामी देशवासियों को चैन से जीने नहीं दे रहे हैं ।
उम्दा ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
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