बीत गई सर्दी , बीत गई ठंड रे ,
दिनभर लुआर बहे गर्मी प्रचंड रे ,
चार दिन की चाँदनी सा प्यारा बसंत था,
पसीने की बूंदों से भीगा अंग-अंग रे ,
स्वेटर,कमीज,कोट लिपटे कई असन वस्त्र,
छोड़छाड़ देह को हुए खंड-खंड रे ,
गर्मी की चुभन से हाल बेहाल हुआ ,
"अज्ञात" कैसे ! कैसे करे व्यंग रे .
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
वाह वाह खूब बहुतखूब लिखा...बधाई
आद0 अजय जी सादर अभिवादन। इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें
जनाब अजय जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय अजय जी आदाब,
अच्छा प्रयास । प्रयास जारी रखे । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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