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आग ..

सहमी सहमी सांसें
बेआवाज़ आहटें
खामोशियों के लिबास में लिपटे
कुछ अनकहे शब्द
पल पल सिमटती ज़िदंगी
जवाबों को तरसते
बेहिसाब सवाल
शायद
यही सब था
इस हयाते सफ़र का अंजाम
लम्हे ज़िदंगी से अदावत कर बैठे
ख़्वाब
आग के साथ सुलगने लगे
अभी तो जीने की आग भी
न बुझ पायी थी
कि मौत की फसल
लहलहाने लगी
इक हुजूम था
मेरे शेष को
अवशेष में बदलने के लिए
नाज़ था जिस वज़ूद पर
वो ख़ाक हो जाएगा
आग के साथ मिलकर
आग हो जाएगा
बशर फिर भी न कुछ समझ पायेगा
मरघट में जलाकर
फिर जलने के लिए
दुनिया में चला जाएगा
कभी रिश्तों की आग जलाएगी
कभी पेट की आग में झुलस जाएगा
जलते जलते
अपने अंजाम पे पहुँच जायगा
दुनियावी आग से शायद
जीत भी जाए बशर
मगर
मरघट की आग से हार जाएगा
आग से मिलकर
अंज़ाम-ए-आग हो जाएगा

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 460

Comment

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Comment by Sushil Sarna on December 19, 2017 at 4:10pm

आदरणीय महेंद्र कुमार जी सृजन के भावों को अपनी मधुर प्रशंसा से सुशोभित करने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on December 19, 2017 at 4:10pm

आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब , प्रस्तुति आपकी मधुर प्रशंसा की दिल से आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on December 19, 2017 at 4:09pm

आदरणीय कालीपद प्रसाद मंडल जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Mahendra Kumar on December 18, 2017 at 9:20pm

इस अच्छी कविता हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आ. सुशील सरना जी. सादर.

Comment by Samar kabeer on December 18, 2017 at 1:56pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 18, 2017 at 9:27am

आदरणीय सुशील सरना जी ,नमन , हयाते सफ़र का  बहुत सुंदर , सटीक  चित्रण किया आपने "

अपने अंजाम पे पहुँच जायगा 
दुनियावी आग से शायद 
जीत भी जाए बशर 
मगर 
मरघट की आग से हार जाएगा 
आग से मिलकर 
अंज़ाम-ए-आग हो जाएगा" मुबारकबाद कुबूल करें 

Comment by Sushil Sarna on December 17, 2017 at 2:52pm

आदरणीय विजय निकोर साहिब , सादर प्रणाम , प्रस्तुति में निहित भावों को अपना आशीर्वाद देने का दिल से आभार।

Comment by vijay nikore on December 16, 2017 at 5:46pm

//सहमी सहमी सांसें 
बेआवाज़ आहटें 
खामोशियों के लिबास में लिपटे 
कुछ अनकहे शब्द 
पल पल सिमटती ज़िदंगी 
जवाबों को तरसते 
बेहिसाब सवाल 
शायद 
यही सब था 
इस हयाते सफ़र का अंजाम //........

बहुत ही दिलकश शब्द-चित्र .... वाह !  आपकी रचना सशक्त है। हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील जी।

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