For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उसी का तसव्वुर पढ़ा जा रहा है

एक लंबी ग़ज़ल 30 शेर के साथ

122 122 122 122
अगर आप में कुछ सलीका बचा है ।
तो फिर आप से भी मेरी इल्तिजा है ।।

रकीबों की महफ़िल में क्या क्या हुआ है ।
सुना आपका ही तो जलवा रहा है ।।

यूँ रुख़ को पलट कर चले जाने वाले ।
बता दीजिए क्या मुहब्बत ख़ता है ।।

हया को खुदा की अमानत जो समझे ।
उन्हें ही सुनाई गई क्यों सजा है ।।

अगर दिल में आये तो रहना भी सीखो ।
मेरी तिश्नगी का यही मशबरा है ।।

मुख़ालिफ़ हुई ये हवाएं चमन में ।
उड़ाना हमें भी कोई चाहता है ।।

है तिरछी निगाहें , निशाना ग़ज़ब का।
उसे कत्ल का इक नशा चढ़ रहा है ।।

हैं खामोश नज़रें है सहमी शरारत।
हमें भी मुहब्बत में धक्का लगा है ।।

पढ़ाई के बावत कहाँ रोजियाँ हैं ।
कहा मत करो वो निकम्मा हुआ है ।।

उसे रूठने की जरूरत नहीं थी ।
उसे क्या पता दिल हमारा बड़ा है ।।

बिठाकर दिलों में नज़र से गिराना ।
तुम्हारे शहर का यही फ़लसफ़ा है ।।

नहीं आ रही वो बुलाने पे देखो ।
हुई किस कदर मौत मुझसे ख़फ़ा है ।।

हुआ जब से रुख़सत वो मेरे हरम से ।
फिजाओं का मंजर भी सूना पड़ा है ।

कहाँ बाँट लेता है कोई भी गम को ।
मुसीबत को सर पे ही ढोना पड़ा है ।।

है मतलब परस्ती का ऐसा ज़माना ।
वो इंसान की शक्ल में सिरफिरा है ।।

उन्हें वाह वाही की दरकार अक्सर ।
कहाँ शायरी से उन्हें लस्तगा है ।।

निगाहें झुकीं और लिए लब पे जुम्बिश।
मेरे इश्क़ का वो पता पूछता है ।।

बड़ी साफ़गोई से वो पूँछते हैं ।
तुम्हारा भी दिल क्या मचलने लगा है ।।

सितारों से कह दो तसल्ली रखें कुछ ।
नया चाँद है कुछ सँवरने लगा है ।।

वोआया है फिर दिल जलाया भी होगा।
धुँआ देखिए घर से उठने लगा है ।।

अजब ख्वाहिशें हैं समंदर की देखो।
वो दरिया से मिलकर उछलने लगा है ।।

खज़ाना मुकम्मल मिलेगा यहीं पर ।
फकीरों का शायद यहीं मकबरा है ।।

असर कर गई है मुहब्बत हमारी ।
उसे मुस्कुराने का ढंग आ गया है।।

उसे देख कर तो खुदा याद आया ।
बड़ी फुरसतों में तराशा गया है ।।

दिए जिसके ख़ंजर ने यह ज़ख्म मुझको ।
वही हाले दिल भी मेरा पूछता है ।।

अक़ीदत में जिसने कबूला था मुझको ।
उसी का तसव्वुर पढा जा रहा है ।।

गुज़र जाएंगे ये जवानी के लम्हे ।
कहाँ मुझको अब तक सुना जा रहा है ।।

वहां जुगनुओं कीहै कीमत नहीं कुछ ।
वहाँ चाँद रोशन जहाँ कर गया है ।।

वफ़ाएँ ही करता रहा उम्र भर जो ।
उसे ही ज़माना बुरा कह रहा है ।।

यहां नजनीनों की बस्ती है प्यारे ।
यहां मुफ़्लिशों का कहाँ आसरा है ।।

---- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 949

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ajay Tiwari on October 18, 2017 at 6:30am

आदरणीय नवीन जी,

अच्छी ग़ज़ल हुई है. शुभकामनाएं.

सादर 

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 18, 2017 at 12:03am
आ0 कबीर सर कोटि कोटि आभार इस दुर्लभ इस्लाह हेतु ।
Comment by Samar kabeer on October 16, 2017 at 5:56pm
'यूँ रुख़ को पलट कर चले जाने वाले
बता दीजिये क्या मुहब्बत ख़ता है'
इस शैर में शुतरगुर्बा का दोष है,सानी मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
'बता दे हमें,क्या महब्बत ख़ता है'

चौथे शैर के ऊला में 'समझे' को "समझें" कर लें ।
छटे शैर के ऊला में 'हुई' को "हुईं" करें ।
सातवें शैर के ऊला में 'है' को "हैं",और सानी में 'इक' को"फिर"कर लें ।
'तुम्हारे शहर का यही फ़लसफ़ा है'
इस मिसरे में 'शहर'का वज़्न आपने 12 लिया है,जबकि सही वज़्न 21 है, मिसरा यूँ कर सकते हैं :-
'तेरे शह्र का क्या यही फ़लसफ़ा है'
'वो इंसान की शक्ल में सिरफिरा है'
इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,सानी मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
'यहाँ कौन इंसां किसी का हुआ है'
'कहाँ शाइरी से उन्हें लस्तगा है'
इस मिसरे में 'लस्तगा'की जगह "वास्ता" कर लें ।
'निगाहें झुकीं और लिए लब पे जुम्बिश'
इस मिसरे में व्याकरण दोष है,मिसरा यूँ कर सकते हैं'
'निगाहें झुकीं और लबों में है जुम्बिश'
'फकीरों का शायद यहीं मक़बरा है'
इस मिसरे में 'फकीरों'बहुवचन और 'मक़बरा'एक वचन है,इस मिसरे को यूँ कर लें:-
'फ़क़ीर-ए; महब्बत का ये मक़बरा है'
आख़री शैर में 'मुफ्लिशों' को "मुफ़लिसों" कर लें ।
बाक़ी शुभ शुभ
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 16, 2017 at 12:28pm
आपकी हर बात मुझे स्वीकार है आ0 कबीर सर ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 16, 2017 at 11:44am
जी हां सर साहित्य में "तुमको मुझको गाज़ी कहना मैं तुमको हाजी कहूंगा" यह प्रथा वाकई अब खतरनाक स्थिति में पहुंच चुकी है ।
Comment by Samar kabeer on October 16, 2017 at 10:34am
भाई जब तक कोई ख़ुद ओबीओ से जुड़ना न चाहे हम उसे कैसे जोड़ सकते हैं,सिर्फ़ प्रयास कर सकते हैं जो हम बराबर ओबीओ का प्रचार करते नहीं थकते ।
रही मुशायरों की बात तो ये इसी तरह हो रहे हैं कि तुम हमें बुलाओ हम तुम्हें बुला लेंगे,इस कारण से अच्छे शायरों को कोई नहीं बुलाता,स्तर गिरने का सबसे बड़ा कारण यही है ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 15, 2017 at 11:35pm
कबीर सर अफसोस यह हुआ कि अदब की महफ़िल में कैसे अधकचरे ज्ञान वाले शायर पैसा देकर बुलाते हैं । मेरे ख्याल से आयजोकों को भी आप ओ बी ओ से जोड़े जिससे उन्हें चुनाव करने में आसानी हो ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 15, 2017 at 11:32pm
आ0 कबीर सर आप जैसा गुरु मिलना दुर्लभ है आज कानपुर में एक मुशायरे में शायरों को सुन रहा था तो आधे शायरों में बह्र और काफ़िया की गलती पकड़ने की कूबत आ गई । सब आपकी कृपा है ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 15, 2017 at 11:29pm
आ0 सालीम रजा साहब विशेष आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 15, 2017 at 11:28pm
आ0 शेख शहजाद उस्मानी साहब तहे दिल से शुक्रिया ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service