For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तू गांधी की लाठी ले ले (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"सभ्यता की तरह तुम भी इतिहास और गांधी जैसे महापुरुषों की लाठियों के सहारे को हमारा सहारा मानने की भूल कर रही हो!" नयी पीढ़ी ने अपने देश की संस्कृति से कहा।
"भूल तो तुम कर रही हो, वैश्वीकरण के दौर में बिक रहे मुल्कों , उनके स्वार्थी नेताओं और बिके हुए बुद्धिजीवियों के बयानों और साजिशों में फंसकर!" संस्कृति ने अपने हाथों में थामी हुई लाठी चूमते हुए कहा - मसलन ये देखो, गांधी जी की लाठी! ये लाठी मेरे लिए उनके अनुभवों, विचारों और दर्शन की सुगठित प्रतीक है। किताबों, काग़ज़ों, चरखों, कलैंडरों से, और खादी से गांधी को कोई कितना भी दूर कर दे, लेकिन उनकी दी ये लाठी मुझे संबल देती है! मैं तुम्हें कभी गुमराह नहीं होने दूंगी!"
"ख़ूब सुने हैं ऐसे प्रवचन! हमें पेट पूजा, परिवार चलाने और दुनिया के साथ चलने के लिए ऐसी लाठियों के सहारे की ज़रूरत नहीं, जिन्हें देश की सत्ता और क़ानून भी तोड़ डालती है!" नयी पीढ़ी ने अपने अनुभव आधारित कुतर्क करना शुरू कर दिया- "गांधी अब हमारे लिए प्रासंगिक नहीं हैं! गांधीगिरी तो महज़ मज़ाक़ बन कर रह गई है!"
"प्रासंगिक तो हैं प्रिय! अवसरों को भुनाने मात्र के लिए टोपियां पहन कर अहिंसा, सत्याग्रह, धरने और आंदोलन किए जाते हैं, मात्र सस्ती लोकप्रियता पाने या स्वार्थपूर्ति के लिए; देश और उसके समाज कल्याण के लिए नहीं न! लोगों की मति भ्रष्ट हो गई है!" संस्कृति ने कहा।

"तो मति भ्रष्ट करने वालों को कौन समझाएगा?"

"इन लाठियों का सही उपयोग, सही समय पर... और ये तुम ही कर सकती हो! संस्कृति ने नयी पीढ़ी से आह्वान किया।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 742

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 18, 2017 at 11:27am
बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहब और जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' साहब मुझे इस तरह प्रोत्साहित करने के लिए, मेरी रचना पर समय देने के लिए।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 15, 2017 at 9:52pm
प्रतीकों का बड़ा ही खूबसूरत इस्तेमाल किया है आदरणीय..इस उम्दा लघु कथा के लिए बधाई..
Comment by Samar kabeer on October 15, 2017 at 8:38pm
शैर आप ही की नज़्र है जनाब,जैसे चाहें इस्तेमाल करें,शैर पसन्द करने के लिए शुक्रिया ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 15, 2017 at 8:07pm
//'गुमराही से बचना है तो
तू गाँधी की लाठी ले ले'//..

आपके इस बेहतरीन मिस्रे को मैं सोशल मीडिया पर रचना के साथ, आपके नाम के साथ टिप्पणी में लिखने की इज़ाजत चाहता हूं मुहतरम जनाब समर कबीर साहब। यह तो इत्तेफाक सुख। वैसे मैं आपको बताना चाहता हूं कि मैंने यह शीर्षक बच्चों वाली मशहूर कविता : //मां खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊं//.. से प्रेरित होकर लिखा है। सादर!
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 15, 2017 at 7:59pm
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर शिरक़त फ़रमाकर एक बार फिर से मेरी स्नेहिल हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब सलीम रज़ा रेवा साहब।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 15, 2017 at 7:57pm
रचना पर उपस्थित हो कर अपनी राय से अवगत कराने व हौसला अफज़ाई के लिए सादर हार्दिक आभार आदरणीय नीलेश शेवगांवकर साहब और आदरणीय कालीपद प्रसाद मण्डल साहब। विनम्र निवेदन है कि उपरोक्त लघुकथा के संदेश : 'गुमराही से बचना है तो, तू गाँधी की लाठी ले ले'--- के मद्देनज़र रचना के इस संवाद पर ग़ौर फ़रमाइयेगा, तो आपके द्वारा सुझाई गई सकारात्मक बात स्वत: आप को स्पष्ट हो जायेगी : (लाठी का सकारात्मक प्रतीकात्मक संदेश) :

// ये देखो, गांधी जी की लाठी! ये लाठी मेरे लिए उनके अनुभवों, विचारों और दर्शन की सुगठित प्रतीक है। किताबों, काग़ज़ों, चरखों, कलैंडरों से, और खादी से गांधी को कोई कितना भी दूर कर दे, लेकिन उनकी दी ये लाठी मुझे संबल देती है! मैं तुम्हें कभी गुमराह नहीं होने दूंगी!"//

फिर भी यदि कुछ स्पष्ट न हो रहा हो, तो कृपया अवश्य बताइयेगा, ताकि रचना में कुछ आवश्यक बदलाव किया जा सके। सादर।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 15, 2017 at 7:48pm
रचना के मर्म को और प्रतीकात्मकता को मान्य कर मेरी हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 15, 2017 at 7:47pm
//'गुमराही से बचना है तो, तू गाँधी की लाठी ले ले'//... वाह, आपने पूरी तरह से मेरी इस लघुकथा के मर्म को ज़हन में लेते हुए गहराई तक समझा और इतने ख़ूबसूरत तरीक़े से अनुमोदन कर मुझे प्रोत्साहित किया है कि मेरा लेखन सार्थक हो गया। तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहब।
Comment by Samar kabeer on October 15, 2017 at 5:29pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

आपकी कविता का शीर्षक इत्तिफ़ाक़ से बह्र में कहा हुआ एक मिसरा है, इसे एक शैर में तब्दील किया है,मुलाहिज़ा फरमाएं,जो शायद आपकी लघुकथा का भाव भी है :-
'गुमराही से बचना है तो
तू गाँधी की लाठी ले ले'
Comment by SALIM RAZA REWA on October 14, 2017 at 9:38pm
जनाब शेख शहज़ाद उस्मानी साहब,
लघुकथा के लिए मुबारक़बाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
Monday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बेहतरीन 👌 प्रस्तुति और सार्थक प्रस्तुति हुई है ।हार्दिक बधाई सर "
Monday
Dayaram Methani commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अति सुंदर गीत रचा अपने। बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"सही कहा आपने। ऐसा बचपन में हमने भी जिया है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
Sunday
Sushil Sarna posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

ममता का मर्म

माँ के आँचल में छुप जातेहम सुनकर डाँट कभी जिनकी।नव उमंग भर जाती मन मेंचुपके से उनकी वह थपकी । उस पल…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Nov 30

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service