बहर-ए-रमल मुसम्मिन मक्सूर व मह्जूफ़
2122 2122 2122 2121
किसके चेह्रे पर लिखा है कौन दुश्मन यार कौन
क्या पता है आड में गुल की छुपा है ख़ार कौन
हक़ है किसका सिर पे पहने है मगर दस्तार कौन
चाँद निकला छत पे किसकी कर रहा दीदार कौन
मतलबी हैं आज रिश्ते खो गया है एतबार
इस जहां में दिल से सच्चा आज करता प्यार कौन
मर गया है मुफ़्लिसी में भूख से देखो अनाथ
सब ही खाते थे तरस लेकिन उठाता भार कौन
पेट भरने के लिए जो कुछ मिला उसका नसीब
फर्क उसको क्या पड़ेगा जानकर सरकार कौन
राह का रोड़ा बना वो झूठी रस्मों का पहाड़
चाहते सब तोड़ना लेकिन करेगा वार कौन
रेप मर्डर प्यार धोखा बस यही खबरें तमाम
बिन मसालों के यहाँ पर बेचता अखबार कौन
-----मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया राजेश कुमारी जी, एक अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.. सादर.
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