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है शिकायत दिल को ऐसा क्यूँ नहीं.....{.ग़ज़ल } संतोष

 अरकान : फ़ाइलातून   फ़ाइलातून  फ़ाइलुन  

है शिकायत दिल को ऐसा क्यूँ नहीं
जब तू मेरा है तो लगता क्यूँ नहीं

जब नज़र से मिल नहीं पाती नज़र
ख़्वाब से बाहर निकलता क्यूँ नहीं

लग रही है क्यूँ थमी दुनिया मुझे
तू भी मौसम सा बदलता क्यूँ नहीं

है ज़बाँ चुप और धड़कन तेज़ है
तू इशारों को समझता क्यूँ नहीं

जिस्म ठण्डा पड़ गया'संतोष' का
आग अपनी उसको देता क्यूँ नहीं

#संतोष खिरवड़कर
{ मौलिक एवं अप्रकाशित }

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Comment by santosh khirwadkar on September 8, 2017 at 7:37pm

शुक्रिया आदरणीय समर साहब चरण स्पर्श,
वास्तव में इस मंच पर स्पष्ट करना चाहता हूँ मेरे साधारण से शब्दों को आपके इस्लाह ,मार्गदरशन ,आशीर्वाद के बग़ैर 'सुन्दर ग़ज़ल " का रूप देना मेरे जैसे प्रशिक्षु के लिए असंभव ही है ! भविष्य में भी आप का ये आशीर्वाद सदा ही अपेक्षित ! जहाँ तक प्रयत्न का प्रश्न है वो मैं सतत ही करता रहूँगा !

Comment by Samar kabeer on September 8, 2017 at 3:25pm
संतोष जी आदाब, ग़ज़ल पर प्रयास करते रहें,मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं ।
Comment by santosh khirwadkar on September 8, 2017 at 12:39pm
शुक्रिया आदरणीय गुप्ता जी ...हृदय से धन्यवाद!!!
Comment by रामबली गुप्ता on September 7, 2017 at 10:08pm
अच्छी ग़ज़ल हुई है संतोष जी हार्दिक बधाई स्वीकारें।सादर

'लग रही क्यूं थमी दुनिया मुझे' ....मुझे या तुझे?

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