ग़ज़ल ( हाए वो शख़्स निकलता है सितमगर यारो )
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(फाइलातुन -फइलातुन -फइलातुन -फेलुन )
मुन्तखिब करता है दिल जिसको भी दिलबर यारो |
हाए वो शख़्स निकलता है सितम गर यारो |
उनके चहरे से नज़र हटती नहीं है मेरी
किस तरह देखूं ज़माने के मैं मंज़र यारो |
कूचए यार से जाएँ तो भला जाएँ कहाँ
राहे उलफत में लुटा बैठे हैं हम घर यारो |
आस्तीनों में जो रखते हैं छुपा कर खंजर
उन अज़ीज़ों से हमेशा रहो बच कर यारो |
रु बरु उनके मैं रोता ही रहा सोच के यह
आँसुओं से तो पिघल जाते हैं पत्थर यारो |
डूब कर इनमें कोई उभरे तो उभरे कैसे
चश्मे दिलबर में है पोशीदा समुंदर यारो |
जिसको तस्दीक़ समझता रहा रहबर अपना
वो चुभोता ही रहा पीठ में नश्तर यारो |
मुन्तखिब --चुनना , पोशीदा-छुपा हुआ
( मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
रु बरु उनके मैं रोता ही रहा सोच के यह
आँसुओं से तो पिघल जाते हैं पत्थर यारो |
वाह वाह आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी,,, बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,, सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं,, मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
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