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फिर भी :कविता :हरि प्रकाश दुबे

कितनी  सहज हो तुम

कोई रिश्ता नही

मेरा ओर तुम्हारा

फिर भी

अनगिनत पढ़ी जा रही हो,मुझे

बिन कुछ कहे

बस मुस्कुरा कर

अनवरत सुनी जा रही हो ,मुझे

बस यही अहसास काफी है

संपूर्ण होने का,मेरे लिए !!

"मौलिक व अप्रकाशित"

© हरि प्रकाश दुबे

Views: 476

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Comment by Samar kabeer on August 4, 2017 at 6:37pm
जनाब हरि प्रकाश दुबे जी आदाब,अच्छी लगी कविता,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on August 4, 2017 at 4:34am
आद0 हरि प्रसाद दुबे जी सादर अभिवादन, बढ़िया सृजन्, बधाई आपको

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