For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पूछ रही सवाल धरा है
सुनलो ज़रा उसकी पुकार

मथ रहे हो जो लगातार
कितना और करोगे व्यापार

खनिज मेरा तुम छिनते हो
फिर कहते हो खुद को महान

मेरी चीज़ो से ही जानो
बनते हो तुम धनवान

मनुष्य हो तुम पशु नहीं हो
पशुता फिर भी है बिराजमान

मथ रहे हो जाने कब से
अब मथो कुछ खुद को भी

शायद विष पशुता का निकले
और दिख जाये तुममें इंसान ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 471

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 31, 2017 at 6:46pm

आदाब आदरणीय समर भाई जी  | धन्यवाद आपका |

Comment by Samar kabeer on July 31, 2017 at 6:36pm
बहना कल्पना भट्ट जी आदाब,अच्छी लगी आपकी कविता,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 31, 2017 at 5:21pm

धन्यवाद् आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 31, 2017 at 5:20pm

आदाब जनाब मोहम्मद आरिफ साहब , जी आपने सच कहा है छंदबद्ध् होती तो बेहतर होती , अभी छंद पर मेरा अभ्यास नहीं हुआ है आदरणीय पर प्रयास करुँगी | सादर |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 31, 2017 at 5:17pm

धन्यवाद् आदरणीय श्याम नारायण जी |

Comment by khursheed khairadi on July 29, 2017 at 9:15am
आदरणीया कल्पना जी , सुन्दर कविता। हार्दिक शुभकामनाएँ। सादर।
Comment by Mohammed Arif on July 28, 2017 at 5:19pm
आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब, बेहतरीन कविता का प्रयास । अगर इस कविता को छंदबद्ध लिखा जाता तो और बेहतर होता । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Shyam Narain Verma on July 28, 2017 at 4:18pm
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति , बधाई आप को | सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
18 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service