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शुरूआत (लघुकथा)

“भाभी जल्दी आइये देखिये ‘साथी डॉट कॉम’ पर कितने उत्तर आये हैं|”

“अरे क्या करती हैं बड़े लोग देखेंगे,सुनेंगे तो क्या सोचेंगे |”

“खुश होंगे भाभी, सब चाहते हैं कि आप फिर से एक नई ज़िंदगी की शुरुआत करें |”

“सालों पहले मुझे सफ़ेद साड़ी से रंगीन साडी पहनाने में, कितने पापड़ बेले थे आपने, भूल गयी क्या, जो अब ये नया काम करने जा रही हैं |”  

“पर मैं सफल हुई ना|थोड़ा सा आत्मविश्वास की ज़रूरत है बस |केदारनाथ के हादसे को हुए भी १२ साल बीत गए हैं ,भाई व बच्चों को तो वापिस नहीं ला सकती पर आप दूसरों को तो सहारा दे सकती हैं|”

“नहीं नहीं बस अब मैं और मेरा काम, ज़िन्दगी आराम से बड़ों की छत्रछाया में निकाल लूंगी |”

“आप पापा मम्मी के सफ़ेद पड़ते हुए चेहरों को नहीं देख रही हैं| वे लोग भी कितने दिन के हैं आखिर? आपके लिए अच्छा सा घर चुनकर वे भी सुकून में रहेंगे|”

“पिछले एक दशक में मेरे बाल भी काले से सफ़ेद हो गए है अब मुझे कोई डर नहीं रह गया है |”

“यही तो मैं कह रही हूँ बिना डरे, बिना रुके, नई ज़िन्दगी की शुरूआत कीजीये| बालों की सफेदी आपको और आपके व्यक्तित्व को और भी गरिमामय बना रही है |आप जैसे और भी अच्छे लोग हैं, बात तो कीजीये ,राहें अपनेआप खुलती जायेंगी|”

“आपको लगता है कि इतने समय के बाद इस दिशा में बढ़ना आसान है क्या?बड़ी मुश्किल से तो इस जिन्दगी से सामंजस्य बैठा पाई हूँ और आप कह रहीं हैं कि फिर नए सिरे से शुरूवात करो, वो भी अनजानों से |मेरी छोडिये ,मम्मी पापा के बारे में सोचिये मेरा मुंह देखकर ही, वे जी रहे हैं |सच पूछिए तो उनका सहारा न होता तो मैं अपने पैरों पर खडी भी ना हो पाती |नई शुरूआत करना चाहती हूँ ,ये तो मैं शायद पूछ ही ना पाऊं|”

“जैसे  पूछने की झिझक आपको है वैसे ही बताने की झिझक उनको भी है| आपको बस कदम बढ़ाने की आवश्यकता है |जिम्मेदारियों से वे कभी पीछे नहीं हटे है|” “कोई जल्दी नहीं है आराम से मेरी बात पर गौर करिए ,बातचीत करिए| नई पारी की शुरूवात करने की सोचिये तो सही ,सब आपके साथ हैं|”

“ये छोटी- मोटी बात नहीं है अपने और पराये दोनों तरफ के लोगों की जिन्दगियों का सवाल है|”   

“अपने तो अपने हैं ही और परायों को अपनाना व अपना बनाना आपको बहुत अच्छी तरह आता है|इसमें आप जरूर सफलता पाएगी ये मैं दावे के साथ कह सकती हूँ |पिछले एक दशक में खाली मन ही है जो नहीं बदला है| सूचना प्रचार प्रसार तंत्र ,नई तकनीक,बड़े बूढों का अनुभव व पारखी आँखें,सब कुछ तो है आपके पास ,सबका संयोजन करके आगे बढ़ने की आवश्यकता है| फिर मैं तो हूँ ही |      

कहकर व सुनकर ननद भाभी दोनों की आँखें भर आई |

मौलिक व अप्रकाशित 

 

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 25, 2017 at 8:42pm
विधवा विवाह को प्रोत्साहित करती बढ़िया प्रस्तुति। सादर हार्दिक बधाई आदरणीय मनीषा सक्सेना जी। इस विषय पर अन्य रचनाएं भी लिखी जा चुकी हैं।
Comment by Manisha Saxena on July 25, 2017 at 11:20am

आ.रविजी प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ ,आगे से ज्यादा ध्यान रखने की कोशिश करूंगी |

Comment by Manisha Saxena on July 25, 2017 at 11:17am

कबीर जी व विजय जी धन्यवाद |

Comment by Ravi Prabhakar on July 24, 2017 at 1:25pm

आदरणीय मनीषा जी मुझे ये तो एक द़श्‍य का वर्णन मात्र ही लगा, उसमें लघुकथा का कोई फ्लेवर नज़र नहीं आया । सादर

Comment by vijay nikore on July 24, 2017 at 12:07am

लघु कथा अच्छी लिखी है। बधाई।

Comment by Samar kabeer on July 23, 2017 at 6:06pm
मोहतरमा मनीषा सक्सेना जी आदाब,अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Manisha Saxena on July 23, 2017 at 5:27pm

धन्यवाद कल्पना जी |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 22, 2017 at 7:23pm

अच्छी कथा हुई है आदरणीया मनीषा सक्सेना जी | बधाई आपको | 

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