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2122 1212 1122 22

है कोई तिश्नगी जरूर तेरी आँखों में |
मीठे एहसास का सरूर तेरी आँखों में ||

जब भी देखा गया ये अक्स किसी दर्पण में ।
बे अदब आ गया , गुरूर तेरी आँखों में ||

ख़ास मुश्किल के बाद ही तेरे दर तक पहुँचा ।
कुछ उमीदें दिखीं हैं दूर तेरी आँखों में ।।

मैं तो हाज़िर था तेरीे एक नज़र पर साकी ।
बेसबब क्यो हुआ फितूर तेरी आँखों में ।।

जाम छलके नहीं है आज तलकभी तुझसे ।
है बड़ा कीमती शऊूर तेरी आँखों में ||

मंजिलो की तलाश में ये भटकती ख्वाहिश ।
देख ली जन्नतों की हूर तेरी आँखों में ||

हार बैठे थे जिंदगी के अंधेरों से हम।
मिल गया जिंदगी का नूर तेरी आँखों में ||

हो के बेचैन जब मैं तुझको भुलाना चाहा |
फिर दिखा है मेरा कसूर तेरी आँखों में ||

नवीन
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by vijay nikore on July 21, 2017 at 11:07am

गज़ल अच्छी बनी है। हार्दिक बधाई।

Comment by Naveen Mani Tripathi on July 20, 2017 at 2:41pm
आ0 लक्ष्मण धामी साहब शुक्रिया ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on July 20, 2017 at 2:40pm
आ0 मुहम्मद आरिफ साहब तहे दिल से शुक्रिया
Comment by Naveen Mani Tripathi on July 20, 2017 at 2:39pm
आ 0 मोहित मिश्रा साहब आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on July 20, 2017 at 2:38pm
आ0 गिरिराज भंडारी सर विशेष आभार और नमन ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on July 20, 2017 at 2:37pm
आ0 रवि शुक्ला साहब सादर नमन के साथ आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on July 20, 2017 at 2:37pm
आ0 समर कबीर सर सादर नमन के साथ आभार ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 20, 2017 at 11:32am

आदरणीय नवीन भाई , बढिया गज़ल कही है , बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on July 18, 2017 at 3:08pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
जनाब रवि शुक्ल साहिब का कहना दुरुस्त है ।
Comment by Mohammed Arif on July 18, 2017 at 7:54am
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, बहूत ही बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

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