२१२२ १२१२ २२
बात खाली मकान क्या करता
दास्ताँ वो बयान क्या करता
पंख कमजोर हो गये मेरे
लेके अब आसमान क्या करता
उसकी सीरत ने छीन ली सूरत
उसपे सिंघारदान क्या करता
रूठ जाते मेरे सभी अपने
चढ़के ऊँचे मचान क्या करता
नींव में झूठ की लगी दीमक
लेके ऐसी दुकान क्या करता
बाढ़ में ढह गये महल कितने
मेरा कच्चा मकान क्या करता
मौन सब थे निजाम की सुनकर
मैं चलाकर जुबान क्या करता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
मोहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया |
आदरणीया राजेश जी बहुत अच्छी गजल कही आपने बहुत बुहुत बधाई आपको एक दो शेर का माेह छोड़ सकती है अाप ।सादर
बात खाली मकान क्या करता
दास्ताँ वो बयान क्या करता
जिस्म बीमार रूह घायल थी
हसरतें दिल जवान क्या करता
आदरणीया राजेश कुमारी जी इस शानदार ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें चंद लाइनें आपकी नज़्र :
हर शेर वाह के काबिल है
हर शेर पे ज़ुबाँ मचलती है
अंत नहीं अज़ल ज़िंदगी का
अजल में भी हयात चलती है
सरना*
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