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***असली कीमत***(लघुकथा)राहिला

उस जबरदस्त भूकंप के शांत होने पर शुभा ने खुद को अपनी नन्ही बिटिया के साथ जाने कितने ही नीचे मलवे में दबा पाया।भाग्य से छत का एक बड़ा सा हिस्सा कुछ ऐसे गिरा कि एक गार सी बन गयी।और चंद सांसे उधार मिल गयी ।दोनों सहमी सी ,आपस में सिमटी हुई मदद की उम्मीद में एक दूसरे का सहारा बनी हुई थीं।लेकिन जब काफी समय गुजर गया और किसी का हाथ मदद के लिए आता नहीं दिखाई पड़ा तो घोर निराशा ,डर और सामने बाहें फैलाये मौत को देख कर आंखों से बेबसी बरस पड़ी ।
"मम्मा!भूख लगी है।"नन्ही रिया ने उस का ध्यान खींचा।
"हां बेटा अभी देती हूँ।"आदतन उसके मुंह से निकल गया।परन्तुअगले ही पल यथार्थ को देख,वह रो पड़ी और रिया को कस कर कलेजे से लगा लिया।तभी उसकी निगाह कोने में पड़े कचड़े के डिब्बे पर पड़ी ,सुबह रसोई में ही तो थी जब ये हादसा हुआ ।याद आया उसने रात का बचा हुआ कुछ खाना डाला था इसमें।लपक कर उसने डिब्बे को खोला ।कुछ रोटियां ही थीं जो खराब नहीं हुई थीं ।
पूरे दो दिन तक उन बासी रोटीयों का एक -एक निवाला अमृत बन कर रिया को जीवन देता रहा ।अंत में मदद की रोशनी ने जैसे ही उस ज़िंदा कब्र में प्रवेश किया ,तो खुशी से पूरी तरह लस्त और बेहाल शुभा अपनी सारी शक्ति बटोर कर चिल्लाई।
"हेल्प...हेल्प..।"
और आख़िरकार ज़िन्दगी जीत गयी।
"ये कोई कहानी नहीं ,बल्कि मेरी आपबीती है।मैं शर्मिंदा हूँ अन्न के हर उस कण से,जिसको मैंने कचरे के डिब्बे में डाल कर अपमान किया था ।उस एक -एक अन्न के कण की असली कीमत मुझे उस दिन पता चली ।जिसकी बदौलत आज मेरी बच्ची मेरे पास सही सलामत है वरना....!" कहते -कहते हाथ में पकड़ा हुआ रूमाल आँखों की नमी को सोखने लगा ।
"तो इसलिए आपने इस विशेष कुकिंग क्लासेज की शुरुआत की?"
"जी हाँ!तब ही से मैंने सोच लिया था कि किसी भी हालत में बचा हुआ खाना ना फैंकूँगी और ना ही फैंकने दूंगी।बस इसी दिशा में शुरुआत हो गयी बचे खाने से नये-नये व्यंजन बनाने की कुकिंग क्लास की। " एक साक्षात्कार के दौरान शुभा ने पत्रकार से कहा।

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Comment by Rahila on July 11, 2017 at 6:56am
आदरणीय रवि सर जी!आपको रचना पसंद आई ।बहुत शुक्रिया।सादर
Comment by Rahila on July 11, 2017 at 6:55am
आदरणीय रोहित जी!,आदरणीय आरिफ़ साहब,आदरणीया राजेश दीदी!,आदरणीय मिश्रा सर जी! आप सब का बहुत आभार रचना को सराहने हेतु और विचार रखने के लिए।सादर
Comment by Ravi Prabhakar on June 18, 2017 at 11:32am

आदरणीय राहिला जी, अन्‍न का आदर करने का सार्थक संदेश प्रेषित करती लघुकथा अच्‍छी लगी। लघुकथा की प्रैजेंटेशन ने बहुत प्रभावित किया। 

"मम्मा!भूख लगी है।"नन्ही रिया ने उस का ध्यान खींचा।
"हां बेटा अभी देती हूँ।"आदतन उसके मुंह से निकल गया।

ये संवाद बहुत ही स्‍वभाविक है इसलिए यह विशेष रूप में प्रभावित करने में सफल रहा।

लघुकथा के अंत में -

"जी हाँ!तब ही से मैंने सोच लिया था कि किसी भी हालत में बचा हुआ खाना ना फैंकूँगी और ना ही फैंकने दूंगी।बस इसी दिशा में शुरुआत हो गयी बचे खाने से नये-नये व्यंजन बनाने की कुकिंग क्लास की। "

यह लघुकथा को एक अलग ही ऊँचाइयों पर ले गया।

सादर शुभकामनाएं ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 14, 2017 at 3:49pm

आदरणीया राहिला जी आपकी लघुकथाओं का अलहदा अंदाज बहुत भाता है शानदार सन्देश को जिस खूबी से आपने प्रेषित किया है काबिले तारीफ़ है इस शानदार रचना के लिए ढेर सारी बधाई सादर 


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Comment by rajesh kumari on June 14, 2017 at 9:29am

बहुत सुन्दर सार्थक संदेशप्रद लघु कथा  है सभी को खाने के एक एक कण की कीमत जाननी चाहिए .बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति हेतु प्रिय राहिला जी 

Comment by Mohammed Arif on June 13, 2017 at 6:38pm
आदरणीया राहिला जी आदाब, संदेशप्रद कथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । वर्तनीगत ढेरों अशुद्धियाँ सर्वत्र व्याप्त है । देखिएगा ।
Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on June 13, 2017 at 11:39am

वाकई लोग खाने की असली कीमत नही जानते ,.......अपने हृदय की गहराई से यह लेख लिखा है ....बहुत खूब सादर।

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